वट सावित्री की कथा

  1. Vat Savitri Vrat Story Significance And Pujavidhi
  2. Vat Savitri Vrat Katha: वट सावित्री व्रत कथा यहां देखें
  3. [PDF] वट सावित्री व्रत कथा


Download: वट सावित्री की कथा
Size: 36.28 MB

Vat Savitri Vrat Story Significance And Pujavidhi

Vat Savitri Vrat: हिन्दू धर्म में प्रत्येक व्रत और त्योहार का अपना एक अलग ही महत्व होता है. ऐसे ही व्रत और त्योहारों में से एक है वट सावित्री का व्रत. यह हिंदू धर्म का खास पर्व माना जाता है. वट सावित्री पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अराधना की जाती है. इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर अपने पति की लंबी उम्र की कामना में व्रत रखती हैं और बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं. आइए जानते हैं कि इस व्रत का महत्व, कथा और पूजा विधि. वट सावित्री व्रत का महत्व (Significance of Vat Savitri Vrat) पुराणों के अनुसार, वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों देवताओं का वास है. इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था. अतः वट वृक्ष को ज्ञान, निर्वाण व दीर्घायु का पूरक माना गया है. ऐसी मान्यता है कि यह व्रत सुहागन स्त्रियों के लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. जो सुहागन स्त्री वट सावित्री व्रत करती है और बरगद के वृक्ष की पूजा करती है उसे अखंड सौभाग्य का फल मिलता है और उसके सभी कष्ट दूर होते हैं. सिर्फ इतना ही नहीं वट सावित्री का व्रत रखने से पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेम बढ़ता है और वैवाहिक जीवन में मधुरता भी आती है. कहते हैं कि वट वृक्ष में कई रोगों का नाश करने की क्षमता होती है। इसलिए इस दिन वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व होता है. वट सावित्री की कथा (Vat Savitri Vrat Katha ) राजर्षि अश्वपति की एक संतान थी, जिसका नाम था सावित्री. सावित्री का विवाह अश्वपति के पुत्र सत्यवान से हुआ था. नारद जी ने अश्वपति को सत्यवान के गुण और धर्मात्मा होने के बारे में बताया था. लेकिन उन्हें यह भी बताया था कि सत्यवा...

Vat Savitri Vrat Katha: वट सावित्री व्रत कथा यहां देखें

Vat Savitri Katha: वट सावित्री व्रत उत्तर भारत में काफी लोकप्रिय है। इस दिन वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। ये व्रत सुहागिनों को अखंड सौभाग्य का वरदान देता है। मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य प्रताप से पति की आयु लंबी होती है। इस व्रत को शादीशुदा महिलाओं के साथ कुंवारी लड़कियां भी करती हैं। जानिए वट सावित्री व्रत की पावन कथा… पौराणिक एवं प्रचलित वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार राजर्षि अश्वपति की एक ही संतान थीं सावित्री। सावित्री ने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पति रूप में चुना था। लेकिन जब नारद जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं तो भी सावित्री ने अपना निर्णय नहीं बदला। वह समस्त राजवैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगीं। उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि- हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। तुम वापस लौट जाओ। सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे वहीं मुझे भी रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है। यमराज के कई बार मना करने पर भी वह नहीं मानीं, अंत में सावित्री के साहस और त्याग से यमराज ने प्रसन्न होकर उनसे तीन वरदान मांगने को कहा। तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर भी मांगा। तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा। यमराज आगे बढ़ने लगे। सावित्री ने कहा कि है प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गईं जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था। सत्यवान जीवित हो गए। यह...

[PDF] वट सावित्री व्रत कथा

वट सावित्री व्रत कथा विवाहित महिलाओं के बीच अत्यधिक प्रचलित ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन आने वालेसावित्री व्रतकी कथा निम्न प्रकार से है: भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि: राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने के कारण से कन्या का नाम सावित्री रखा गया। कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया। ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं। एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए। सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए। इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। सावित्री हठ करने लगीं और बोल...