आदि गुरु शंकराचार्य की मृत्यु कैसे हुई

  1. Explainer : कैसे बनते हैं शंकराचार्य और किस तरह शुरू हुई हिंदू धर्म में ये परंपरा
  2. Adi shankaracharya Jayanti
  3. शंकराचार्य का जीवन परिचय
  4. आदि शंकराचार्य के जन्म के बारे में फैला भ्रम, जानिए सचाई
  5. आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय Adi Shankaracharya Biography in Hindi
  6. आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय
  7. आदि गुरु शंकराचार्य कौन थे, कैसे हुई मृत्यु, कौन से हैं 4 मठ, जिनकी प्रतिमा PM ने की स्थापित


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Explainer : कैसे बनते हैं शंकराचार्य और किस तरह शुरू हुई हिंदू धर्म में ये परंपरा

स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती के निधन से द्वारका और ज्योर्तिमठ पीठ में बनेंगे नए शंकराचार्य आमतौर पर दंडी स्वामी ही बनते हैं शंकराचार्य आदि शंकराचार्य ने देशभर में घूमकर चार मठ बनाए और वहां शंकराचार्यों की नियुक्ति की द्वारका शारदापीठ और ज्योर्तिमठ पीठ के शंकराचार्य रहे स्वामी स्वरुपानंद के निधन के बाद उनके उत्तराधिकारियों के चयन को लेकर कौतुहल है. ये सवाल भी पूछे जा रहे हैं उनकी जगह इन दोनों पीठों में जो शंकराचार्य बनेंगे वो कैसे नियुक्त होंगे. शंकराचार्य हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है जो बौद्ध धर्म में दलाईलामा एवं ईसाई धर्म में पोप के समकक्ष है. देश में चार मठों में चार शंकराचार्य होते हैं. स्वामी स्वरूपानंद अकेले ऐसे शंकराचार्य थे, जो दो मठों के प्रमुख थे. इन दोनों मठों से जुड़े अखाड़े और धार्मिक संस्थान और साधु संत निश्चित तौर पर इन दोनों मठों के लिए उनके उत्तराधिकारी यानि प्रमुख का चयन कर सकते हैं लेकिन उन्हें शंकराचार्य की पदवी ऐसे नहीं मिलेगी. कब हुई शंकराचार्य की शुरुआत इस पद की शुरुआत आदि शंकराचार्य से मानी जाती है. आदि शंकराचार्य एक हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरु थे, जिन्हें हिंदुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में एक के तौर पर जाना जाता है. आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये. कैसे बने शुरुआती शंकराचार्य चारों मठों में प्रमुख को शंकराचार्य कहा गया. इन मठों की स्थापना करके आदि शंकराचार्य ने उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया. तबसे ही इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है.हर मठ का अपना एक विशेष महावाक्य भी होता है. मठ का मतलब क्या है मठ का अर्थ ऐसे संस्थानों से है जहां इसके गुर...

Adi shankaracharya Jayanti

1. आदि शंकराचार्य का जन्म समय : आज के इतिहासकार कहते हैं कि आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में हुआ और उनकी मृत्यु 820 ईस्वी में। मतलब वह 32 साल जीए। इतिहासकारों का यह मत तथ्यों से मैच नहीं होता है। अत: उनका मत असिद्ध हैं। दरअसल, 788 ईस्वी में एक अभिनव शंकर हुए जिनकी वेशभूषा और उनका जीवन भी लगभग शंकराचार्य की तरह ही था। वे भी मठ के ही आचार्य थे। उन्होंने चिदंबरमवासी श्रीविश्वजी के घर जन्म लिया था। उनको इतिहाकारों ने आदि शंकराचार्य समझ लिया। ये अभिनव शंकराचार्यजी कैलाश में एक गुफा में चले गए थे। ये शंकराचार्य 45 वर्ष तक जीए थे। लेकिन आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर नम्बूद्री ब्राह्मण शिवगुरु एवं आर्याम्बा के यहां हुआ था और वे 32 वर्ष तक ही जीए थे। 2. आदि शंकराचार्य का असली जन्म समय : महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि आदि शंकराचार्यजी का काल लगभग 2200 वर्ष पूर्व का है। उन्होंने इसका आधार मठों की परंपरा को बताया। आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। उत्तर दिशा में उन्होंने बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ की स्थापना की थी। यह स्थापना उन्होंने 2641 से 2645 युधिष्ठिर संवत के बीच की थी। इसके बाद पश्‍चिम दिशा में द्वारिका में शारदामठ की स्थापना की थी। इसकी स्थापना 2648 युधिष्‍ठिर संवत में की थी। इसके बाद उन्होंने दक्षिण में श्रंगेरी मठ की स्थापना भी 2648 युधिष्‍ठिर संवत में की थी। इसके बाद उन्होंने पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में 2655 युधिष्‍ठिर संवत में गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। आप इन मठों में जाएंगे तो वहां इनकी स्थापना के बारे में लिखा जान लेंगे। मठों में आदि शंकराचार्य से अब तक के जितने भी गुरु ...

शंकराचार्य का जीवन परिचय

आदि शंकराचार्य की विलक्षण प्रतिभा और महानता का परिचय इनके बचपन से ही मिलने लगा। तीन वर्ष की अवस्था में पहुँचते-पहुँचते ही इनके पिता परलोकवासी हो गये। पाँच वर्ष की अवस्था में इन्हें पढ़ने के लिये गुरुकुल भेजा गया। सात वर्ष की आयु में ये सम्पूर्ण वेद-शास्त्रों में पारंगत होकर घर वापस आ गये। इनकी असाधारण प्रतिभा को देखकर लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। विद्याध्ययन समाप्त करनेके बाद आदि गुरु शंकराचार्य ने संन्यास लेना चाहा, किन्तु इनको माता ने अनुमति नहीं दी। एक दिन अपनी माता के साथ ये नदी में स्नान करने गये। स्नान करते समय इन्हें एक मगर ने पकड़ लिया। इन्होंने अपनी माता से कहा कि यदि आप मुझे आद्य शंकराचार्य ने गोविन्दभगवत्पाद से संन्यास की दीक्षा ली और अल्पकाल में ही योगसिद्ध महात्मा हो गये। गुरु ने इन्हें काशी जाकर ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखने की आज्ञा दी। काशी में भगवान शिव ने इन्हें चाण्डाल के रूप में दर्शन दिया। काशी में ही इन्हें भगवान व्यास के भी दर्शन हुए और उनकी कृपा से इनकी सोलह वर्ष की आयु बत्तीस वर्ष हो गयी। तदनन्तर आदि शंकराचार्य ने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया और शास्त्रार्थ में विभिन्न मतवादियों को परास्त करके अद्वैतवाद को स्थापना की। यद्यपि इन्होंने अनेक मन्दिर बनवाये, किन्तु चारों धामों में इनके चार मठ विशेष प्रसिद्ध हैं। आज भी इनके द्वारा स्थापित मठों के प्रधान आचार्य शंकराचार्य के नाम से ही जाने जाते है। भगवान् शङ्कराचार्य के द्वारा बनाये आदि गुरु शंकराचार्य का जीवन परिचय पढ़कर हमें यह पता चलता है कि वो स्वयं भगवान् शंकर के अवतार थे। इनका नाम शंकराचार्य होने की भी यही वजह थी। बचपन से ही इन्होंने अपनी महानता और असाधारण प्रतिभा का परिचय देना शुरू कर दिया था।शंकराचार्य...

आदि शंकराचार्य के जन्म के बारे में फैला भ्रम, जानिए सचाई

आदि शंकराचार्य का जन्म- महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि आदि शंकराचार्यजी का काल लगभग 2200 वर्ष पूर्व का है। दयानंद सरस्वती जी 137 साल पहले हुए थे। आज के इतिहासकार कहते हैं कि आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में हुआ और उनकी मृत्यु 820 ईस्वी में। मतलब वह 32 साल जीए। अब हम असली बात समझते हैं। आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। उत्तर दिशा में उन्होंने बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ की स्थापना की थी। यह स्थापना उन्होंने 2641 से 2645 युधिष्ठिर संवत के बीच की थी। इसके बाद पश्‍चिम दिशा में द्वारिका में शारदामठ की स्थापना की थी। इसकी स्थापना 2648 युधिष्‍ठिर संवत में की थी। इसके बाद उन्होंने दक्षिण में श्रंगेरी मठ की स्थापना भी 2648 युधिष्‍ठिर संवत में की थी। इसके बाद उन्होंने पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में 2655 युधिष्‍ठिर संवत में गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। आप इन मठों में जाएंगे तो वहां इनकी स्थापना के बारे में लिखा जान लेंगे। आदि शंकराचार्य के समय जैन राजा सुधनवा थे। उनके शासन काल में उन्होंने वैदिक धर्म का प्रचार किया। उन्होंने उस काल में जैन आचार्यों को शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया। राजा सुधनवा ने बाद में वैदिक धर्म अपना लिया था। राजा सुधनवा का ताम्रपत्र आज उपलब्ध है। यह ताम्रपत्र आदि शंकराचार्य की मृत्यु के एक महीने पहले लिख गया था। शंकराचार्य के सहपाठी चित्तसुखाचार्या थे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है बृहतशंकर विजय। हालांकि वह पुस्तक आज उसके मूल रूप में उपलब्ध नहीं हैं लेकिन उसके दो श्लोक है। उस श्लोक में आदि शंकराचार्य के जन्म का उल्लेख मिलता है जिसमें उन्होंने 2631 युधिष्ठिर संवत में आदि शंकराचार्य के जन्म की बात...

आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय Adi Shankaracharya Biography in Hindi

Table of Content • • • • • • • • • • आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय Adi Shankaracharya Biography in Hindi जिस समय हमारा देश एक उस समय हिंदू धर्म काफी कमजोर पड़ गया था, लेकिन समकालीन जन्मे आदि शंकराचार्य जी ने एक बार फिर से सनातन धर्म को उठ खड़ा किया और आज तक जगतगुरू आदि शंकराचार्य भारतीय इतिहास के एक महान धर्म प्रवर्तक और दार्शनिक थे। मध्य इतिहास में कई नए धर्म बौद्ध, जैन इत्यादि हिंदू धर्म से टूटकर एक नए धर्म बने थे। जब भारतवर्ष में हिंदू धर्म की लोकप्रियता लगभग शून्य हो चुकी थी और बौद्ध धर्म सबसे लोकप्रिय धर्म बन चुका था। आदि शंकराचार्य जी ने अपने प्रबल तेज और तप से शास्त्रार्थ करके एक बार फिर से हिंदू धर्म को पुनः जागृत किया। हिंदू धर्म के पुनर्गठन का श्रेय इन्हीं को जाता है। कई बड़े ऋषि-मुनियों ने कहा है, कि आदि शंकराचार्य जी स्वयं भगवान शंकर के अंश थे। हिंदी साहित्य में आज के बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में आदि शंकराचार्य जी द्वारा दिए गए दर्शनशास्त्र के ज्ञान को भी सम्मिलित किया जाता है। हालांकि शंकराचार्य जी अल्प आयु लेकर पैदा हुए थे, लेकिन उनका जीवन एक सामान्य मनुष्य के सोच से परे है। उन्होंने बहुत से मठों की स्थापना की है, साथ ही अनगिनत ज्ञानवर्धक ग्रंथों, शास्त्रों, उपनिषद इत्यादि की रचना भी की है। आदि शंकराचार्य का जन्म व प्रारंभिक जीवन Adi Shankaracharya Birth & Early Life in Hindi जगतगुरू आदि शंकराचार्य के जन्म को लेकर विभिन्न विद्वानों में काफी अंतर देखा जाता है। वर्तमान के इतिहासकार उनके जन्म की अवधि लगभग 788 ईसा पूर्व बताते हैं। प्राचीन दक्षिण भारत के केरल राज्य के कलादी नामक जगह पर शंकराचार्य का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम श्री शिवा गुरु तथा माता का नाम अर्य...

आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय

आदि शंकराचार्य एक भारतीय दार्शनिक और धर्मशास्त्री थे जिन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत दिया। उन्हें आदि शंकराचार्य ने जातीय और धार्मिक कुरीतियाँ को इनकार किया और लोगो को धर्म का सही साधना करना सिखया। इनका जन्म से ही धर्म के प्रति लगाव था। वे बचपन से विद्वान थे। संस्कृत के बड़े बड़े श्लोक बचपन से ही उन्हें मुँह जुबानी यद् था। और वे सन्यासी बनना चाहते थे। उनकी माँ पर ये नहीं चलती थी। आदि शंकराचार्य ने पुरे भारत का भ्रमण किया। और चार पीठो की स्थापना किया। जो इस पारकर है - श्रृंगेरी मठ भारत के दक्षिण में चिकमंगलुुुर में स्थित है। वर्धन मठ भारत के पूर्वी भाग ओडिशा राज्य के जगन्नाथ पुरी में स्थित है। शारदा मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। और उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है ज्योतिर्मठ। आदि शंकराचार्य का जन्म श्रृंगेरी के अभिलेखों में कहा गया है कि शंकर का जन्म "विक्रमादित्य" के शासनकाल के 14 वें वर्ष में हुआ था, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह नाम किस राजा का है। यद्यपि कुछ शोधकर्ता चंद्रगुप्त द्वितीय (4 वीं शताब्दी सीई) के नाम की पहचान करते हैं। आदि शंकर के जीवन की कम से कम चौदह अलग-अलग आत्मकथाएँ हैं। इनमें से कई को ओंकारा विजया कहा जाता है, जबकि कुछ को गुरुविजय, शंकरायुध्याय और शंकराचार्यचरिता कहा जाता है। शंकर आचार्य का जन्म 504 ई.पू. में केरल में कालपी नामक गावं में हुआ था। इनके पिता का नाम शिवगुरु भट्ट और माता का नाम सुभद्रा था। कहा जाता है। भगवान शंकर की पूजा से बहुत समय बाद शंकराचार्य का जन्म हुआ था। जब ये तीन ही वर्ष के थे तब इनके पिता का देहांत हो गया। वे छह वर्ष की उम्र में ही प्रकांड पंडित हो गए थे और आठ वर्ष की अवस्था में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था। शंकराचा...

आदि गुरु शंकराचार्य कौन थे, कैसे हुई मृत्यु, कौन से हैं 4 मठ, जिनकी प्रतिमा PM ने की स्थापित

चंडीगढ़ (आज़ाद वार्ता) आदि शंकर (संस्कृत: आदिशङ्कराचार्यः)(Adi guru shankaracharya) ये भारत के एक महान दार्शनिक और धर्मप्रवर्तक थे. आदि गुरु शंकराचार्य अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया. भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएं बहुत प्रसिद्ध हैं. पहले ये कुछ दिनों तक काशी में रहे, और तब इन्होंने विजिलबिंदु के तालवन में मण्डन मिश्र को सपत्नीक शास्त्रार्थ में परास्त किया. इन्होंने समस्त भारतवर्ष में भ्रमण करके बौद्ध धर्म को मिथ्या प्रमाणित किया और वैदिक धर्म को पुनरुज्जीवित किया. कुछ बौद्ध इन्हें अपना शत्रु भी समझते हैं, क्योंकि इन्होंने बौद्धों को कई बार शास्त्रार्थ में पराजित करके वैदिक धर्म की पुन: स्थापना की. तो चलिए जान लेते हैं. आदि गुरु शंकराचार्य के पूरे जीवन बारे में, जो हर कोई जानना चाहता है. खबर में खास बात • आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म कहां हुआ? • शंकराचार्य के चार मठ कौन कौन से हैं? • आदि गुरु शंकराचार्य की मृत्यु कैसे हुई? • केदारनाथ में आदि शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म कहां हुआ? शंकर आचार्य का जन्म 507-508 ई. पू. में केरल में कालपी अथवा ‘काषल’ नामक ग्राम में हुआ था. इनके पिता का नाम शिवगुरु भट्ट और माता का नाम सुभद्रा था. बहुत दिन तक सपत्नीक शिव को आराधना करने के अनंतर शिवगुरु ने पुत्र-रत्न पाया था, अत: उसका नाम शंकर रखा. जब ये तीन ही वर्ष के थे तब इनके पिता का देहांत हो गया. ये बड़े ही मेधावी और प्रतिभाशाली थे. छह वर्ष की अवस्था में ही ये प्रकांड पंडित हो गए थे और आठ वर्ष की अवस्था में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था. शंकराचार्य के चार मठ कौन कौन से हैं? उत्तराम्नाय मठ या उत्तर मठ, ज्योतिर्मठ जो कि जोशीमठ ...