देबाशीष दासगुप्ता कबीर अमृतवाणी

  1. Kabir Das Ke Dohe: बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
  2. Best 21+ Kabir Das Ki Vani In Hindi
  3. कबीर अमृतवाणी


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Kabir Das Ke Dohe: बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर । bada hua to kya hua, jaise ped khajoor . पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।। panthee ko chhaaya nahin, phal laage ati door .. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर, bada hua to kya hua, jaise ped khajoor, कबीर साहेब के दोहे, कबीर अमृतवाणी, कबीर के दोहे, कबीर के दोहे सत्य पर, कबीर के दोहे हिंदी में, कबीर के दोहे साखी, कबीर के दोहे कविता, Kabir Motivational, Best of Kabir, life lesson by Sant Kabir Das, importance of truth by Kabir, kabir amritvani about reality ये भी पढ़ें; ✓ कबीर के दोहे अर्थ सहित: कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार ✓ रहीम के दोहे: रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि

Best 21+ Kabir Das Ki Vani In Hindi

कबीर दास बहुत दोहे कहे ते उनमे से २१+ बढ़िया कबीर की वाणी को यहाँ हिंदी अर्थ समेत देने की कोशिश किये हे हम। आप इन सारे कबीर के दोहे या कबीर की वाणी को पढ़कर उसे अपने जीवन में अनुशासन करने से आपकी और इस समाज की बलाई होगी। Also Read This :- • • • Best 1 to 10 Kabir Ki Vani -1- पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। अर्थ : बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा. -2- साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय। अर्थ : इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है. जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे. -3- तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय, कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय। अर्थ : कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है. यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है ! -4- धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय। अर्थ : मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा ! -5- माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर। अर्थ : कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती. कबीर की ऐसे व्यक्ति क...

कबीर अमृतवाणी

बढ़ा हुआ तो क्या हुआ,जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं,फल लगे अति दूर । निंदक नियरे राखिए,ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना,निर्मल करे सुभाय। दुःख में सुमिरन सब करेसुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥ माटी कहै कुम्हार सो,क्या तू रौंदे मोहि एक दिन ऐसा होयगा,मै रौंदूँगी तोहि मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर । तेरा तुझकौं सौंपता,क्या लागै है मोर ॥1॥ काल करे सो आज कर,आज करे सो अब । पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥ जाति न पूछो साधु की,पूछ लीजिये ज्ञान,। मोल करो तरवार का,पड़ा रहन दो म्यान ॥ नहाये धोये क्या हुआ,जो मन मैल न जाए । मीन सदा जल में रहे,धोये बास न जाए । पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ,पंडित भया न कोय । ढाई आखर प्रेम का,पढ़े सो पंडित होय ।।