ध्रुवस्वामिनी नाटक का सारांश

  1. ध्रुवस्वामिनी का सारांश सरल संछेप में Archives
  2. ध्रुवस्वामिनी : जयशंकर प्रसाद द्वारा हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक
  3. ध्रुवस्वामिनी नाटक
  4. ध्रुवस्वामिनी by जयशंकर प्रसाद
  5. ध्रुवस्वामिनी का कथानक/कथासार ( Dhruvsvamini Ka Kathanak/kathasar )
  6. [pdf] ध्रुवस्वामिनी नाटक की मूल समस्या पर प्रकाश डालिए


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ध्रुवस्वामिनी का सारांश सरल संछेप में Archives

jayshankr prsad ke natak dhruvswamini राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक चेतना ध्रुवस्वामिनी नाटक में प्रसाद जी ने राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक चेतना का उत्कृष्ट रूप प्रस्तुत किया है। इतिहास से कथावस्तु का आधार ग्रहण करते हुए अतीत पर वर्तमान का चित्र प्रस्तुत करने मे सिद्धस्त नाटक शिल्पी माने जाते हैं। प्रसाद जी भारत के अतीत के गौरव एवं महत्ता … Categories Tags

ध्रुवस्वामिनी : जयशंकर प्रसाद द्वारा हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक

सभी Hindi Pdf Book यहाँ देखें सभी Audiobooks in Hindi यहाँ सुनें पुस्तक का विवरण : शिविर का पिछला भाग जिसके पीछे पर्वतमाला की प्राचीर है, शिविर का एक कोना दिखलाई दे रहा है जिससे सटा हुआ चल्द्रातप टंगा है। मोटी-मोटी रेशमी डोरियों से सुनहले काम के परदे से बँधे हैं। दो-तीन सुन्दर मंच रखे हुए हैं। चन्द्रातप और पहाड़ी के बीच छोटा-सा कुंज, पहाड़ी पर से एक पतली जलधारा उस हरियाली में बहती है। झरने के पास शिलाओं से चिपकी…….. Pustak Ka Vivaran : Shivir ka pichla bhag parvatmala ki prachir hai, shivir ka ek kona dikhlai de raha hai jisse sata hua chandratap tanga hai. Moti-Moti reshmi doriyo se sunhale kaam ke parde khambo se bandhe the. Do-teen sundar manch rakhe hue the. Chandratap aur pahadi ke bich chota sa kunj, pahadi par se ek patli jaldhara us hariyali mein bahti hai……………………………. Description about eBook : The back part of the camp is the ramparts of the mountain range, a corner of the camp is showing, which has been closed by Chandratap. Thick and thick silk doriyas were tied with golden kimbo. Two or three beautiful platforms were kept. A small stream between the Chandratap and the hill, a thin stream from the hill runs in that greener………………………….. 44Books का एंड्रोइड एप डाउनलोड करें “सृजन का हर कार्य पहले ध्वंस के एक कार्य से शुरू होता है।” ‐ पेब्लो पिकासो “Every act of creation is first of all an act of destruction.” ‐ Pablo Picasso Related Posts: • मधुर मिलन- जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी सामाजिक नाटक | Madhur… • अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल- भास्करकुमार मिश्र मुफ्त… • आराध...

ध्रुवस्वामिनी नाटक

ध्रुवस्वामिनी नाटक जयशंकर प्रसाद की अंतिम एवं अत्यंत महत्वपूर्ण नाट्यकृति है। इसका प्रकाशन वर्ष 1933 ई. है। ध्रुवस्वामिनी एक नारी प्रधान नाटक है। इस नाटक में नाट्यवस्तु और नाट्यशिल्प को उचित रूप में विनियोजित एवं उनमें सामंजस्य परिलक्षित होता है। प्रसाद के अन्य नाटकों के अनुरूप यह भी ऐतिहासिक नाटक ही है। हालांकि इनमें ऐतिहासिकता को जीवित रखा गया हैं और कुछ तोड़-मरोड़ भी किया गया है। विश्वासदत्त का देवीचंद्रगुप्तम् के अंश, नाटक के मूलाधार है। नाटक के कथ्य को यथार्थ रूप में यथावत प्रस्तुत किया है। अपने आप मे एकमात्र नाटक है जिसमें उपन्यासिक प्रवृति का अभाव है। इस नाटक में संघर्ष और द्वंद्व की नाटकीयता परिलक्षित होती है। नाटक का मंचन इतना सरल है कि बिना किसी काट छांट के किया जा सकता है। समस्याप्रधान होने की बावजूद समस्या नाटक के वर्ग के अंतर्गत इसे नहीं रखा जाता। वैचारिक नाटक होने के पश्चात यह नीरस नहीं है। प्रसाद जी भारतीय संस्कृति के समर्थक थे इसलिए चन्द्रगुप्त की गरिमा बनाए रखने के लिए रामगुप्त की हत्या सामंतकुमार से करवाई। इस तरह प्रसाद जी ने कई जगह ऐतिहासिक तथ्यों को चरित्र रक्षा के लिए या तो छोड़ दिया या मरोड़ दिया। नाटक का उद्देश्य ऐतिहासिक तथ्यों को पुनर्जीवित करने का नहीं बल्कि उसके भीतर छुपे सत्य को उजागर करना है। इसे सिद्ध करने के लिए कही-कही उन्हें नाटक को अपने अनुसार घुमाना पड़ा। नाटक के पात्र ध्रुवस्वामिनी– रामगुप्त की पत्नी और महादेवी। Try प्रधान चरित्र जो कि नाटक के अन्य पात्रों पर भी प्रभाव डालता है। समस्त घटनाएं इसी से संबंधित है। शकराज– गौण पात्र। महत्वकांक्षी, रणकुशल एवं कुटनीतिज्ञ साथ ही क्रूर भी है। जो कि रामगुप्त के राज्य को चारों ओर से घेर लेता है। कोमा– मि...

ध्रुवस्वामिनी by जयशंकर प्रसाद

ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दीनाटक है। यह प्रसाद की अंतिम और श्रेष्ठ नाट्य-कृति है। इसका कथानक गुप्तकाल से सम्बद्ध और शोध द्वारा इतिहाससम्मत है। यह नाटक इतिहास की प्राचीनता में वर्तमान काल की समस्या को प्रस्तुत करता है। प्रसाद ने इतिहास को अपनी नाट्याभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर शाश्वत मानव-जीवन का स्वरुप दिखाया है, युग-समस्याओं के हल दिए हैं, वर्तमान के धुंधलके में एक ज्योति दी है, राष्ट्रीयता के साथ-साथ विश्व-प्रेम का सन्देश दिया है। इसलिए उन्होंने इतिहास में कल्पना का संयोजन कर इतिहास को वर्त्तमान से जोड़ने का प्रयास किया है। Jaishankar Prasad, a most celebrated personality related to the modern Hindi literature and Hindi theatre, was born at 30th January in the year 1889 and died at 14th January in the year 1937. He was a great Indian poet, novelist and dramatist, born in the simple madheshiya Teli Vaisya family of the Varanasi, UP, India. His father (named Babu Devki Prasad, also called as the Sunghani Sahu) has his own business related to the tobacco dealing. Jaishankar Prasad had to face some financial problems in his family as he has lost his father in his young age. Because of such financial problems, he could not study further than 8th class. However, he was so keen to know many languages, past histories and Hindi literature, that’s why he continued his study at home. As he continued his study, he was influenced much from the Vedas which imitated him in the deep philosophical rival. He has started writing poetry from his very early age. He w...

ध्रुवस्वामिनी का कथानक/कथासार ( Dhruvsvamini Ka Kathanak/kathasar )

Advertisement प्रस्तुत नाटक में प्रसाद जी ने इतिहास के घटनाक्रम में कुछ नई संभावनाओं को तलाशा है | यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि सम्राट ऐसा माना जाता है कि रामगुप्त अत्यंत कायर और विलासी प्रवृत्ति का था और सम्राट बनने के लिए सर्वथा अयोग्य था | इसीलिए सम्राट समुद्रगुप्त ने अपने छोटे पुत्र चंद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था परंतु रामगुप्त अपने अमात्य शिखर स्वामी के साथ मिलकर एक षड्यंत्र रचता है और चंद्रगुप्त की वाग्दत्ता पत्नी ( मंगेतर ) अथवा प्रेयसी ध्रुवस्वामिनी से विवाह कर लेता है और स्वयं राजसिंहासन पर अधिकार कर लेता है | चन्द्रगुप्त स्वेच्छा से रामगुप्त को सम्राट स्वीकार कर लेता है | ध्रुवस्वामिनी भी धीरे-धीरे अपने आप को परिस्थितियों के अनुसार ढलने की कोशिश करने लगती है | परंतु उस समय चंद्रगुप्त के सब्र का बांध टूट जाता है जब रामगुप्त अपनी कायरता की सभी हदों को पार करते हुए अपनी पत्नी ध्रुवस्वामिनी को शकराज को सौंपने के लिए तैयार हो जाता है | चंद्रगुप्त स्वयं ध्रुवस्वामिनी के वेश में शकराज के शिविर में जाता है और उसका वध कर देता है | रामगुप्त धोखे से चंद्रगुप्त की हत्या करना चाहता है तो एक सामंत रामगुप्त को देख लेता है और उसकी हत्या कर देता है | अंत में चंद्रगुप्त ध्रुवस्वामिनी से विवाह कर लेता है और चंद्रगुप्त सम्राट व ध्रुवस्वामिनी साम्राज्ञी बन जाती है | ‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक तीन अंकों में विभक्त है | प्रथम अंक रामगुप्त के शिविर में आरंभ होता है, दूसरा अंक शकराज के शिविर से प्रारंभ होता है तथा तृतीय व अंतिम अंक का पर्दा शकदुर्ग के भीतरी प्रकोष्ठ में उठता है और वहीं ‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक का अंत होता है | 🔷 प्रथम अंक – रामगुप्त का शिविर ; ध्रुवस्वामिनी का प्रवेश...

[pdf] ध्रुवस्वामिनी नाटक की मूल समस्या पर प्रकाश डालिए

प्रिय पाठक (Friends & Students)! ?इसके बारे में जानेंगे। इसके अलावा आपइस प्रकार के प्रश्नो ( ध्रुवस्वामिनी’ एक समस्या नाटक है। सप्रमाण उत्तर दीजिए, समस्या-नाटक के रूप में ‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक का मूल्यांकन कीजिए। ध्रुवस्वामिनी एक समस्या प्रधान नाटक है। ‘इस कथन के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक में उठाई गई समस्याओं पर विचार कीजिए।) का जवाब भी यही होगा। Contents • 1 ध्रुवस्वामिनी नाटक की मूल समस्या • 2 ध्रुवस्वामिनी नाटक की मूल समस्या • 3 ध्रुवस्वामिनी नाटक की मूल समस्या • 4 ध्रुवस्वामिनी नाटक की मूल समस्या • 5 ध्रुवस्वामिनी नाटक की मूल समस्या • 6 ध्रुवस्वामिनी नाटक की मूल समस्या • 7 ध्रुवस्वामिनी नाटक की मूल समस्या • 8 राजनीतिक समस्या • 9 धार्मिक समस्या- • 10 इस लेख के बारे में: ध्रुवस्वामिनी नाटक की मूल समस्या भूमिका-‘ ध्रुवस्वामिनी ‘की कथा गुप्तकाल के इतिहास पर आधारित है। इसलिए नाटककार ने उस युग की सामाजिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का सफल चित्रण किया है। चूंकि कवि एक सामाजिक प्राणी है वह अपने आसपास से ही रचना की विषय वस्तु चुनता है। वह भले ही किसी समय की रचना कर रहा हो उसमें आधुनिक समय की समस्यायें जाने अनजाने में आ ही जाती हैं। ऐसा ही कुछ’ ध्रुवस्वामिनी ‘के साथ भी है। जयशंकर प्रसाद ने’ ध्रुवस्वामिनी ‘की ऐतिहासिक कथा के माध्यम से आधुनिक काल की समस्याओं को अंकित कर दिया है। नारी की सामाजिक स्थिति की समस्या– ध्रुवस्वामिनी ‘नाटक की रचना करते समय प्रसाद जी को जिस समस्या ने प्रभावित किया वह है नारी की सामाजिक स्थिति की समस्या। हम सभी जानते हैं कि विदेशी सभ्यता की चकाचौंध कर देने वाली जीवन पद्धति व साहित्य के वातावरण में जब भारतीय जन-मानस अपने को भूलकर अपनी परम्परा, संस्कृति...