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  1. द वरून मुलींची नावे
  2. The Himalayan Times
  3. संस्कृत सुभाषितानि
  4. हिंदी दि‍वस वि‍शेष: ‘ई’ साक्षरता के बि‍ना हम और हमारी भाषाएं नहीं बचेंगी
  5. भारतीय कला


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द वरून मुलींची नावे

नावाच्या पहिल्या अक्षराचा मुलीच्या आयुष्यावर खूप परिणाम होतो. पहिले अक्षर व्यक्तीचा स्वभाव देखील दर्शवते. नावाच्या पहिल्या अक्षराचा मुलीच्या आयुष्यावर केवळ नकारात्मकच नाही तर सकारात्मक प्रभावही पडतो. मुलीमध्ये कोणती वैशिष्ट्ये आहेत आणि कोणते गुण आहेत, हे सर्व नावाच्या पहिल्या अक्षरावर अवलंबून असते असे ज्योतिषशास्त्रातील तज्ज्ञ सांगतात. नावाच्या पहिल्या अक्षराचा मुलीच्या आयुष्यातील सर्व पैलूंवर सकारात्मक आणि नकारात्मक प्रभाव पडतो. यामुळेच बाळाचे नाव ठेवताना खूप विचार करून ठेवले जाते कारण हे नाव बाळाच्या संपूर्ण आयुष्यभरासाठी असते. साधरणपणे जर तुमच्या बाळाच्या पत्रिकेनुसार नावाचे आद्याक्षर ‘द’ आले असेल तर ज्योतिषशास्त्रानुसार बाळाची रास मीन असेल. हल्ली बरेच लोक राशीनुसार जे अक्षर आले आहे ते एक पाळण्यातले नाव ठेवतात आणि आईवडिलांच्या नावावरून बाळाचे दुसरे नाव ठेवतात जे एरवी हाक मारण्यासाठी व व्यवहारांसाठी वापरले जाते. Table of Contents • • • • • नावाच्या सर्व अक्षरांना काही ना काही अर्थ असतो पण नावाचे पहिले अक्षर सर्वात प्रभावशाली मानले जाते. असे म्हणतात की तुमचे नाव ज्या अक्षराने सुरू होते त्या अक्षरात सर्वाधिक ऊर्जा असते. तुमच्या बाळाचे आद्याक्षर द आले असेल किंवा तुम्हाला द वरून बाळाचे नाव (D Varun Mulinchi Nave Marathi) ठेवायचे असेल तर याठिकाणी द वरून मुलींची नावे दिलेली आहेत. तुम्हाला नाव ठरवण्यास सोपे जावे म्हणून येथे नावाचा अर्थ देखील दिला आहे. यापैकी एखादे नाव तुम्हाला तुमच्या परीसाठी नक्कीच आवडेल. तुमच्या द वरून मुलींची नावे – D Varun Mulinchi Unique Nave द वरून मुलींची नावे जर तुम्ही तुमच्या मुलीचे नाव द अक्षरावरून ठेवण्याचा विचार करत असाल आणि तुम्ही तुमच्या मुलीसाठी ...

The Himalayan Times

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संस्कृत सुभाषितानि

जिस प्रकार विविध रंग रूप की गायें एक ही रंग का (सफेद) दूध देती है, उसी प्रकार विविध धर्मपंथ एक ही तत्त्व की सीख देते है सर्वं परवशं दु:खं सर्वम् आत्मवशं सुखम् । एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुख-दु:खयो: ॥ जो चीजें अपने अधिकार में नहीं है वह दु:ख से जुडा है लेकिन सुखी रहना तो अपने हाथ में है । आलसी मनुष्य को ज्ञान कैसे प्रा ?पृथिव्या गादि ज्ञान नहीं तो धन नही मिलेगा । यदि धन नही है तो अपना मित्र कौन बनेगा? और मित्र नही तो सुख का अनुभव कैसे । ।। सेवा ही परम धर्म है || अनन्तपारम् किल शब्दशास्त्रम् स्वल्पम् तथाऽऽयुर्बहवश्च विघ्नाः । सारं ततो ग्राह्यमपास्य फल्गु हंसैर्यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्‌ ॥ पढने के लिए बहुत शास्त्र हैं और ज्ञान अपरिमित है | अपने पास समय की कमी है और बाधाएं बहुत है । जैसे हंस पानी में से दूध निकाल लेता है उसी तरह उन शास्त्रों का सार समझ लेना चाहिए। सुभाषित 211 कलहान्तानि हम्र्याणि कुवाक्यानां च सौहृदम् | कुराजान्तानि राष्ट्राणि कुकर्मांन्तम् यशो नॄणाम् || झगडों से परिवार टूट जाते है | गलत शब्द के प्रयोग करने से दोस्ती टूट जाती है । बुरे शासकों के कारण राष्ट्र का नाश होता है| बुरे काम करने से यश दूर भागता है। दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम् । मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रय: ॥ मनुष्य जन्म, मुक्ति की इच्छा तथा महापुरूषों का सहवास यह तीन चीजें परमेश्वर की कृपा पर निर्भर रहते है । सुखार्थी त्यजते विद्यां विद्यार्थी त्यजते सुखम् । सुखार्थिन: कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिन: सुखम् ॥ जो व्यक्ती सुख के पीछे भागता है उसे ज्ञान नहीं मिलेगा । तथा जिसे ज्ञान प्राप्त करना है वह व्यक्ति सुख का त्याग करता है । सुख के पीछे भागने वाले को विद्या कैसे प्राप्त होगी? तथ...

हिंदी दि‍वस वि‍शेष: ‘ई’ साक्षरता के बि‍ना हम और हमारी भाषाएं नहीं बचेंगी

साइबर युग में हिंदी दि‍वस का वही महत्‍व नहीं है जो आज से चालीस साल पहले था। संचार क्रांति‍ ने पहलीबार भाषा वि‍शेष के वर्चस्‍व की वि‍दाई की घोषणा कर दी है। संचार क्रांति‍ के पहले भाषा वि‍शेष का वर्चस्‍व हुआ करता था, संचार क्रांति‍ के बाद भाषा वि‍शेष का वर्चस्‍व स्‍थापि‍त करना संभव नहीं है। अब कि‍सी भी भाषा को हाशि‍ए पर बहुत ज्‍यादा समय तक नहीं रखा जा सकता। अब भारत की सभी 22 राजकाज की भाषाओं का फॉण्‍ट मुफ्त में उपलब्‍ध है। भारतीय भाषाओं का साफ्टवेयर बनना स्‍वयं में भाषायी वर्चस्‍व की समाप्‍ति‍ की घोषणा है। संचार क्रांति‍ ने यह संदेश दि‍या है कि‍ भाषा अब लोकल अथवा स्‍थानीय नहीं ग्‍लोबल होगी। भाषा की स्‍थानीयता की जगह भाषा की ग्‍लोबल पहचान ने ले ली है। अब प्रत्‍येक भाषा ग्‍लोबल है। कोई भाषा राष्‍ट्रीय, क्षेत्रीय अथवा आंचलि‍क नहीं है। उपग्रह क्राति‍ के साथ ही संचार क्रांति‍ हुई और हम सब नए भाषायी पैराडाइम में दाखि‍ल हुए हैं। भाषा की स्‍थानीयता खत्‍म हुई है। बहुभाषि‍कता का प्रसार हुआ है। अब वि‍भि‍न्‍न भाषाओं में लोग आसानी के साथ संवाद कर रहे हैं। एक- दूसरे को संदेश और सामग्री संप्रेषि‍त कर रहे हैं। अब हिंदी की स्‍थानीय अथवा राष्‍ट्रीय स्‍वीकृति‍ की समस्‍या नहीं है। बल्‍कि‍ संचार क्रांति‍ ने हिंदी और अन्‍य सभी भाषाओं को ग्‍लोबल स्‍वीकृति‍ दि‍लायी है। आज वे कंपनि‍यां और कारपोरेट घराने हिंदी का कारोबार करने के लि‍ए मजबूर हैं जो कभी यह मानते थे कि‍ वे सि‍र्फ अंग्रेजी का ही व्‍यवसाय करेंगे। इस प्रसंग में रूपक मडरॉक के स्‍वामि‍त्‍व वाले ‘न्‍यूज कारपोरेशन’ का उदाहरण देना समीचीन होगा। इस कंपनी की प्रति‍ज्ञा थी कि‍ वह समाचारों का सि‍र्फ अंग्रेजी में ही प्रसारण करेगा, और उसने सारी दुनि‍या...

भारतीय कला

विद्वानों का मानना है कि भारतीय कला भारतीय कला भारतीय कला अपनी प्राचीनता तथा विवधता के लिए विख्यात रही है। आज जिस रूप में 'कला' शब्द अत्यन्त व्यापक और बहुअर्थी हो गया है, प्राचीन काल में उसका एक छोटा हिस्सा भी न था। यदि ऐतिहासिक काल को छोड़ और पीछे प्रागैतिहासिक काल पर दृष्टि डाली जाए तो विभिन्न नदियों की घाटियों में पुरातत्त्वविदों को खुदाई में मिले असंख्य पाषाण उपकरण विश्व विरासत सूची (यूनेस्को) में शामिल भारतीय धरोहर क्रम धरोहर घोषणा वर्ष चित्र 1 2 3 4 5 6 7 काजीरंगा नेशनल पार्क 8 केवलादेव नेशनल पार्क 9 मानस सेंक्चुरी 10 11 12 13 14 15 चोल मंदिर 16 पट्टाडकल के स्मारक 17 18 नंदा देवी और 19 20 21 22 माउन्टेन रेलवे 23 24 25 चम्पानेर-पावरगढ़ पार्क 26 27 28 ऐतिहासिक काल में भारतीय कला में और भी परिपक्वता आई। 'कला' शब्द की उत्पत्ति कल् धातु में अच् तथा टापू प्रत्यय लगाने से हुई है (कल्+अच्+टापू), जिसके कई अर्थ हैं—शोभा, अलंकरण, किसी वस्तु का छोटा अंश या आर्ट शब्द का उपयोग समझा जाता है, जिसे पाँच विधाओं—संगीतकला, मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तुकला और काव्यकला में वर्गीकृत किया जाता है। इन पाँचों को सम्मिलित रूप से ललित कलाएँ कहा जाता है। वास्वत में कला मानवा मस्तिष्क एवं आत्मा की उच्चतम एवं प्रखरतम कल्पना व भावों की अभिव्यक्ति ही है, इसीलिए कलायुक्त कोई भी वस्तु बरबस ही संसार का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। साथ ही वह उन्हें प्रसन्नचित्त एवं आहलादित भी कर देती है। वास्तव में यह कलाएँ व्यक्ति की आत्मा को झंझोड़ने की क्षमता रखती हैं। यह उक्ति कि भारतीय संगीत में वह जादू था कि इन्हें भी देखें: सांस्कृतिक प्रभावशीलता हमेशा से ही अपने परंपरागत सौंदर्य भाव और प्रामाणिकता के कारण भारत...