जलवायु परिवर्तन से बचने के उपाय

  1. जलवायु परिवर्तन के अनुकूल रहने के लिए विकासशील देशों को हर साल चाहिए 5 लाख करोड़ रुपए
  2. जलवायु परिवर्तन से बचने के उपाय
  3. जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के उपाय
  4. Climate change क्या है, क्या हैं जलवायु परिवर्तन के खतरे और उनसे बचने के उपाय
  5. जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत, वरना आगे मचेगी तबाही!
  6. जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहे हैं बिहार के लीची किसान


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जलवायु परिवर्तन के अनुकूल रहने के लिए विकासशील देशों को हर साल चाहिए 5 लाख करोड़ रुपए

जलवायु परिवर्तन के अनुकूल रहने के लिए विकासशील देशों को हर साल 512,138 करोड़ रुपए की जरुरत है। यदि जलवायु में बदलाव इसी तरह जारी रहता है तो यह जरुरत 2030 तक बढ़कर 21,94,875 करोड़ रुपए (30,000 करोड़ डॉलर) और 2050 तक 36,58,125 करोड़ रुपए (50,000 करोड़ डॉलर) पर पहुंच जाएगी। यह जानकारी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी 2020 जो न केवल कोरोना महामारी का वर्ष था, यह वर्ष जलवायु परिवर्तन के भी नाम रहा। हाल ही में नासा ने 2020 को भी दुनिया के इससे भी चिंता की बात यह है कि सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में हो रही क्यों जरुरी है जलवायु अनुकूलन जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहे हैं उसके चलते बाढ़, सूखा, तूफान जैसी आपदाओं का आना सामान्य सी बात बन गया है। यदि प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान को देखें तो 2020 में इनके चलते हालांकि इस नुकसान की भरपाई तो की जा सकती है पर इसके चलते जितने लोगों की जिंदगियां गई, जितने घर उजड़े उसकी भरपाई करना नामुमकिन है। इन आपदाओं का काफी बोझ भारत, चीन जैसे विकासशील देशों को उठाना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन इससे होने वाले नुकसान से बचने का एक बेहतरीन उपाय है। दुनिया के ज्यादातर देश इस दिशा में काम भी कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 72 फीसदी देशों ने जलवायु अनुकूलन को लेकर योजनाएं भी बनाई हैं, लेकिन धन का आभाव और उनपर काम ने करने के कारण यह अधर में अटकी हैं। विकासशील देशों के सामने वित्त एक बड़ी समस्या है। जिसके आभाव में यह देश अभी भी इन आपदाओं से निपटने के लिए तैयार नहीं हो पा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि जलवायु सम्बन्धी खतरों को कम करने में अनुकूलन का बहुत बड़ा हाथ है। 2019 में ऐसे में जलवायु अनुकूलन के लिए सार्वजनिक और निजी दोनों तरीकों से वित...

जलवायु परिवर्तन से बचने के उपाय

जीवाश्म ईंधनों का उपयोग ‘चरणबद्ध तरीके से बंद करने के बजाय, इसके उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने’ के भारत के सुझाव को महत्व देते हुए ग्लासगो में COP26 शिखर सम्मेलन में लगभग 200 देश शनिवार को एक जलवायु समझौते के लिए तैयार हो गए. इन सबके बीच एक सवाल जो सबसे ज्यादा लोगों के दिमाग में उठ रहा है कि आखिर क्या है ये जलवायु परिवर्तन (Climate Change)? इसका पर्यावरण और इंसानों पर क्या असर पड़ेगा और इससे निपटने के लिए क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं? जलवायु परिवर्तन से तात्पर्य तापमान और मौसम के पैटर्न में दीर्घकालिक बदलाव से है. ये बदलाव स्वाभाविक हो सकते हैं, लेकिन 1800 के दशक से मानव गतिविधियां जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण रही हैं. खासकर जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस) के जलने के कारण, जो गर्म गैसों का उत्पादन होता है, जिससे क्लाइमेट चेंज होता है. जलवायु परिवर्तन किसी स्थान पर पाए जाने वाले सामान्य मौसम में होने वाला परिवर्तन है. यह एक बदलाव हो सकता है, जैसेकिसी जगह पर एक साल में आमतौर पर कितनी बारिश होती है. या एक महीने में किसी जगह के सामान्य तापमान में बदलाव हो सकता है. जलवायु परिवर्तन एक तरह से पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन है. यह पृथ्वी के सामान्य तापमान में बदलाव या फिर मौसम और बारिश में अंतर हो सकता है. मौसम कुछ ही घंटों में बदल सकता है लेकिन जलवायु को बदलने में सैकड़ों या लाखों साल लगते हैं. पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन का कारण क्या है? कई चीजें जलवायु पर असर डालती हैं.सूर्य से पृथ्वी की दूरी बदल सकती है. सूरज कम या ज्यादा ऊर्जा भेज सकता है. समुद्र बदल सकते हैं. जब कोई ज्वालामुखी फटता है तो वह हमारी जलवायु को बदल सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य की गतिविधियां भ...

जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के उपाय

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) एक अहम बैठक करने जा रहा है. यह बैठक 23 सितंबर को न्यूयॉर्क स्थित संस्था के मुख्यालय में होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसमें हिस्सा लेने जा रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की ही एक संस्था है - इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज या अंतरशासकीय जलवायु परिवर्तन परिषद यानी आईपीसीसी. नवंबर 1988 में वजूद में आई यह संस्था जलवायु परिवर्तन संबंधी वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर दुनिया की सरकारों को संभावित ख़तरों के प्रति आगाह करती है और उनकी रोकथाम के उपाय भी सुझाती है. वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन के बारे में समय-समय पर प्रकाशित होने वाली उसकी रिपोर्टें स्थिति की गंभीरता से परिचित कराती हैं. 2002 से 2015 तक भारत के राजेंद्र पचौरी उसके अध्यक्ष रह चुके हैं. इस समय यह पद दक्षिण कोरिया के होसुंग ली के पास है. स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा शहर में स्थित ‘आइपीसीसी’ के मुख्यालय ने हाल ही में अपने वैज्ञानिकों की एक नई रिपोर्ट प्रकाशित की है. इसके अनुसार नए अध्ययनों का निचोड़ यही है कि पृथ्वी पर तापमान, उसके पूरे इतिहास की तुलना में, इस समय सबसे अधिक तेज़ गति से बढ़ रहा है. 1950 वाले दशक के बाद से भूमि और महासागरों के ऊपर का तापमान, हर दशक में, औसतन 0.2 डिग्री सेल्सियस की गति से बढ़ता गया है. कम से कम पिछले 30 लाख वर्षों में, और संभवतः पिछले छह करोड़ वर्षों में भी, पृथ्वी की ऊपरी सतह का तापमान इस गति से कभी नहीं बढ़ा! तापमान बढ़ने की असाधारण तेज़ गति उदाहरण के तौर पर क़रीब 20 हज़ार वर्ष पहले समाप्त हुए पिछले हिमयुग के समय का अधिकतम तापमान बाद के 10 हज़ार वर्षों में कुल मिलाकर केवल 5 डिग्री सेल्सियस बढ़ा. यानी, प्रति दस वर्ष केवल 0.005 डिग्री की गति से ...

Climate change क्या है, क्या हैं जलवायु परिवर्तन के खतरे और उनसे बचने के उपाय

जीवाश्म ईंधनों का उपयोग ‘चरणबद्ध तरीके से बंद करने के बजाय, इसके उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने’ के भारत के सुझाव को महत्व देते हुए ग्लासगो में COP26 शिखर सम्मेलन में लगभग 200 देश शनिवार को एक जलवायु समझौते के लिए तैयार हो गए. इन सबके बीच एक सवाल जो सबसे ज्यादा लोगों के दिमाग में उठ रहा है कि आखिर क्या है ये जलवायु परिवर्तन (Climate Change)? इसका पर्यावरण और इंसानों पर क्या असर पड़ेगा और इससे निपटने के लिए क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं? जलवायु परिवर्तन से तात्पर्य तापमान और मौसम के पैटर्न में दीर्घकालिक बदलाव से है. ये बदलाव स्वाभाविक हो सकते हैं, लेकिन 1800 के दशक से मानव गतिविधियां जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण रही हैं. खासकर जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस) के जलने के कारण, जो गर्म गैसों का उत्पादन होता है, जिससे क्लाइमेट चेंज होता है. जलवायु परिवर्तन किसी स्थान पर पाए जाने वाले सामान्य मौसम में होने वाला परिवर्तन है. यह एक बदलाव हो सकता है, जैसे किसी जगह पर एक साल में आमतौर पर कितनी बारिश होती है. या एक महीने में किसी जगह के सामान्य तापमान में बदलाव हो सकता है. जलवायु परिवर्तन एक तरह से पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन है. यह पृथ्वी के सामान्य तापमान में बदलाव या फिर मौसम और बारिश में अंतर हो सकता है. मौसम कुछ ही घंटों में बदल सकता है लेकिन जलवायु को बदलने में सैकड़ों या लाखों साल लगते हैं. पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन का कारण क्या है? कई चीजें जलवायु पर असर डालती हैं. सूर्य से पृथ्वी की दूरी बदल सकती है. सूरज कम या ज्यादा ऊर्जा भेज सकता है. समुद्र बदल सकते हैं. जब कोई ज्वालामुखी फटता है तो वह हमारी जलवायु को बदल सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य की गतिविधियां...

जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत, वरना आगे मचेगी तबाही!

जलवायु परिवर्तन से आपदाओं की संख्या और अवधि साल-दर-साल बढ़ती जा रही है, वैज्ञानिकों के अनुसार यदि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाये गए तो आपदाएं आगे भी तबाही मचाती रहेंगी। डिजास्टर नामक जर्नल में यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो के वैज्ञानिकों के एक शोधपत्र के अनुसार महिलाएं आपदा से बचने के निर्णय पुरुषों से बेहतर लेती हैं और आपदा बीतने के बाद के बाद पुनर्निर्माण के काम में भी अधिक भागीदारी करती हैं, पर इनका योगदान हमेशा उपेक्षित ही रहता है। शोधपत्र में कहा गया है की जिस दिन आपदा प्रबंधन में महिलाओं की उपेक्षा बंद हो जायेगी और उनकी बातें सुनी जाने लगेंगी उस दिन से आपदा प्रबंधन का काम अपेक्षाकृत आसान हो जाएगा। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो के समाज विज्ञान और आपदा प्रबंधन विभागों में वैज्ञानिक मेलिसा विल्लार्रेअल की अगुवाई में इस अध्ययन को अमेरिका के विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदा के बाद लोगों से बातचीत के आधार पर किया गया है। बातचीत में महिलायें और पुरुष दोनों ही शामिल थे। मेलिसा के अनुसार आपदा के बारे में महिलाओं की अलग धारणा होती है और उनके पास बहुत सारे प्रायोगिक विकल्प भी होते हैं, पर अंत में केवल पुरुष ही हरेक चीज तय करते हैं। प्रबंधन में महिलाओं की उपेक्षा के कारण आपदा से जूझने में और फिर बाद में सामान्य स्थिति बनाने में सामान्य से अधिक समय लगता है। महिलायें खतरे को जल्दी समझती ही नहीं हैं बल्कि उससे निपटने के उपाय भी उसके साथ सोच लेती हैं फिर भी उनकी बात नहीं सुनी जाती क्योंकि पुरुष उन्हें अपनी तुलना में गौण समझते हैं। हद तो तब हो जाती है जब आपदा के बाद सहायता देने वाले संस्थान भी प्रभावित घरों के पुरुषों से ही बात कर चले जाते हैं। शोधपत्र में कहा गया है कि यद...

जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहे हैं बिहार के लीची किसान

• अप्रैल में लगातार नौ दिनों तक तापमान 40 डिग्री सेल्यियस या उससे अधिक रहा, जिससे लीची का फल फट गया। जलवायु परिवर्तन से होने वाले इस नुकसान से बचाव या वैकल्पिक प्रजाति को लेकर अभी बहुत काम नहीं हो पाया है, जिससे किसानों को नुकसान होता है। • जलवायु परिवर्तन के बाद लीची की खेती व व्यापार के लिए दूसरी बड़ी समस्या इसकी पैकेजिंग और ट्रांसपोर्टेशन है। लीची की शेल्फ लाइफ बहुत कम होती है, ऐसे में इसकी पैकेजिंग की टेक्नोलॉजी पर रिसर्च की जरूरत है। • बिहार के तीन जिलों मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर और वैशाली में होने वाली शाही लीची को जीआइ टैग हासिल है। बिहार में शाही लीची और चाईना लीची की खेती होती है, जिसमें शाही लीची का हिस्सा 80 प्रतिशत है। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मुशहरी ब्लॉक में पड़ने वाले मणिका गांव के किसान राजीव रंजन की 10 हेक्टेयर जमीन में लीची का बगीचा लगा है। लेकिन इस साल बारिश नहीं होने और अप्रैल में अधिक गर्मी पड़ने से उनकी फसल को काफी नुकसान हुआ है। मुजफ्फरपुर जिले के हजारों दूसरे किसानों की तरह राजीव रंजन कई दूसरी फसलों की खेती करते हैं , लेकिन लीची उनके परिवार की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। राजीव कहते हैं , इस साल शाही लीची की फसल 70 प्रतिशत तक ठीक है , पर चाईना लीची की फसल 20 से 25 प्रतिशत ही ठीक है। इसकी वजह बताते हुए वे कहते हैं कि इस बार गर्मी के मौसम में समय पर पानी बारिश नहीं हुई , अब हुई है (25 मई के आसपास ) तो थोड़ी राहत है। वे कहते हैं कि मार्च अंत या अप्रैल के शुरू में बारिश हो जाए तो लीची की फसल के लिए अच्छा होता है और इस तरह पूरी फसल तैयार होने के दौरान तीन बार बारिश हो जाए तो ठीक रहता है। राजीव के अनुसार , लीची की फसल को 37 डिग्री सेल्सियस के आसप...