मुंसी प्रेमचन्द्र की कहानी

  1. एक आँच की कसर
  2. 25 मुंशी प्रेमचंद की कहानियां
  3. मुंशी प्रेमचंद की कहानी पूस की रात (सम्पूर्ण)
  4. मुंशी प्रेमचंद की कहानी: स्त्री और पुरुष
  5. मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय
  6. मंत्र: मुंशी प्रेमचंद की कहानी
  7. तेंतर: मुंशी प्रेमचंद की कहानी
  8. मुंशी प्रेमचन्द्र की जीवनी


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एक आँच की कसर

ek aanch ki kasar Munshi Premchand ki kahani एक आँच की कसर – मुंशी प्रेमचंद की कहानी | ek aanch ki kasar Munshi Premchand ki kahani in Hindi सारे नगर मेँ महाशय यशोदानंद का बखान हो रहा था। नगर हीं में नहीं, समस्त प्रांत में उनकी कीर्ति की जाती थी, समाचार पत्रों में टिप्पणियां हो रही थी, मित्रों से प्रशंसापूर्ण पत्रों का तांता लगा हुआ था। समाज सेवा इसको कहते हैं! उन्नत विचार के लोग ऐसा ही करते हैं। महाशय जी ने शिक्षित समुदाय का मुख उज्वल कर दिया। अब कौन यह कहने का साहस कर सकता है कि हमारे नेता केवल बात के धनी हैं, काम के धनी नहीं! महाशय जी चाहते तो अपने पुत्र के लिए उन्हें कम से कम ₹20,000 रुपये दहेज में मिलते, उस पर खुशामद ढाते! मगर लाला साहब ने सिद्वान्त के सामने धन की रत्ती बराबर परवाह न की और अपने पुत्र का विवाह बिना एक रुपये दहेज लिए स्वीकार किया। वाह! हिम्मत हो तो ऐसी हो, सिद्वान्त प्रेम हो तो ऐसा हो, आदर्श पालन हो तो ऐसा हो। वहरे सचिव वीर, अपनी माता के सच्चे सपूत, तू ने वह कर दिखाया जो कभी किसीने न किया था। हम बड़े गर्व से तेरे सामने मस्तक नवाते हैं। यहाँ पढ़ें : महाशय यशोदानंद के दो पुत्र थे। बड़ा लड़का पढ़ लिखकर फाजिल हो चुका था। उसी का विवाह तय हो रहा था और हम देख चूके हैं, बिना कुछ दहेज लिए। आज का तिलक था। शाहजहाँपुर स्वामीदयाल तिलक लेकर आने वाले थे। शहर के गणमान्य सज्जनों को निमंत्रण दे दिए गए थे। वे लोग जमा हो गए थे। महफिल सजी हुई थी। एक प्रवीण सितारिया अपना कौशल दिखाकर लोगों को मुग्ध कर रहा था। दावत का सामान भी तैयार था। मित्रगण यशोदानंदन को बधाई दे रहे थे। एक महाशय बोले-तुमने तो कमाल कर दिया! दूसरे-कमाल! यह कहिए कि झंडे गाढ़ दिए अब तक जिसे देखा मंच पर व्याख्या...

25 मुंशी प्रेमचंद की कहानियां

मुंशी प्रेमचंद की कहानियां हिन्दी कहानी व उपन्यास के क्षेत्र को ‘प्रेमचंद युग’ दिखाने वाले मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस में हुआ था। मुंशी प्रेमचंद की कहानी न सिर्फ हिंदी में पढ़ सकते हैं, बल्कि उर्दू में भी इनके साहित्य पढ़े जा सकते हैं। प्रेमचंद की कहानियों में अपनापन, सामाजिक दशा का वर्णन, जात-पात के भेदभाव से लेकर गरीबी और अमीरी के बीच झलकते दर्द को साफ महसूस किया जा सकता है। यही वजह है कि मुंशी प्रेमचंद की कहानी पढ़ते हुए बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग तक सभी रम जाते हैं। प्रेमचंद की कहानियों में सेवासदन, गबन, कर्मभूमि, प्रेमाश्रम, गोदान, रंगभूमि व निर्मला जैसे कई उपन्यास लोकप्रिय हैं। इसके अलावा कफन, पंच परमेश्वर, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा और बूढ़ी काकी जैसी 300 से अधिक कहानियां भी चर्चित हैं। आइए, एक बार फिर घुल-मिल जाइए, मुंशी प्रेमचंद की इन कलात्मक रचनाओं में।

मुंशी प्रेमचंद की कहानी पूस की रात (सम्पूर्ण)

मुन्नी झाड़ू लगा रही थी। पीछे फिरकर बोली- तीन ही तो रुपये हैं, दे दोगे तो कम्मल कहाँ से आवेगा ? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी ? उससे कह दो, फसल पर दे देंगे। अभी नहीं । हल्कू एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ा रहा । पूस सिर पर आ गया, कम्मल के बिना हार में रात को वह किसी तरह नहीं जा सकता। मगर सहना मानेगा नहीं, घुड़कियाँ जमावेगा, गालियाँ देगा। बला से जाड़ों में मरेंगे, बला तो सिर से टल जाएगी । यह सोचता हुआ वह अपना भारी- भरकम डील लिए हुए (जो उसके नाम को झूठ सिद्ध करता था ) स्त्री के समीप आ गया और खुशामद करके बोला- ला दे दे, गला तो छूटे। कम्मल के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूँगा। मुन्नी उसके पास से दूर हट गयी और आँखें तरेरती हुई बोली- कर चुके दूसरा उपाय ! जरा सुनूँ तो कौन-सा उपाय करोगे ? कोई खैरात दे देगा कम्मल ? न जाने कितनी बाकी है, जों किसी तरह चुकने ही नहीं आती । मैं कहती हूँ, तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते ? मर-मर काम करो, उपज हो तो बाकी दे दो, चलो छुट्टी हुई । बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जनम हुआ है । पेट के लिए मजूरी करो । ऐसी खेती से बाज आये । मैं रुपये न दूँगी, न दूँगी । हल्कू उदास होकर बोला- तो क्या गाली खाऊँ ? मुन्नी ने तड़पकर कहा- गाली क्यों देगा, क्या उसका राज है ? मगर यह कहने के साथ ही उसकी तनी हुई भौहें ढीली पड़ गयीं । हल्कू के उस वाक्य में जो कठोर सत्य था, वह मानो एक भीषण जंतु की भाँति उसे घूर रहा था । उसने जाकर आले पर से रुपये निकाले और लाकर हल्कू के हाथ पर रख दिये। फिर बोली- तुम छोड़ दो अबकी से खेती । मजूरी में सुख से एक रोटी तो खाने को मिलेगी । किसी की धौंस तो न रहेगी । अच्छी खेती है ! मजूरी करके लाओ, वह भी उसी में झोंक दो, उस पर धौंस । हल्कू ने रुपये लिये और इस तर...

मुंशी प्रेमचंद की कहानी: स्त्री और पुरुष

विपिन बाबू एक कवि थे, जिन्हें दुनिया में सबसे ज्यादा सुंदर रचना महिलाएं ही लगती थीं। इनकी कविताओं में भी सिर्फ महिलाओं के रूप, सुंदरता और यौवन की ही तारीफ हुआ करती थी। जैसे ही किसी महिला का जिक्र होता, तो ये अलग और सुंदर सी कल्पना की दुनिया में चले जाते थे। इन्होंने अपने जीवन में भी एक ऐसी ही सुंदर महिला की कल्पना की थी। विपिन बाबू के मन में था कि उनकी पत्नी फूल सी कोमल, सूरज जैसी चमक, कोयल सी आवाज और सुबह की लाली से शोभित हो। अब विपिन बाबू के कॉलेज की परीक्षा भी खत्म हो गई थी। विपिन के लिए कई सारे रिश्ते आ रहे थे। एक दिन विपिन के मामा ने उसकी शादी भी तय कर दी। विपिन का मन लड़की देखने का था। उसे देखना था कि जैसी पत्नी की वो कल्पना करता है, वो वैसी है या नहीं। विपिन ने मामा से अपनी होने वाली पत्नी को देखने का निवेदन दिया, लेकिन मामा ने उसे कहा कि वो बहुत ही सुंदर है उन्होंने उसे खुद देखा है। मामा की बातों पर भरोसा करके विपिन ने शादी के लिए हां कर दी। शादी का दिन भी आ गया। मंडप के पास बैठा विपिन अपनी पत्नी को देखने के लिए उतावला था। होने वाली पत्नी को उसने गहनों से सजा हुआ देखा। चेहरे पर घूंघट, हाथों और पैरों की सुंदर उंगलियां देखकर उसके मन को थोड़ी राहत मिली। दूसरे दिन विदाई के बाद जैसे ही डोली विपिन के घर पहुंची, तो वो तुरंत अपनी पत्नी को देखने के लिए दौड़ा। तब उसकी पत्नी पालकी से बाहर घूंघट उठाकर देख रही थी। जैसे ही विपिन की निगाहें उसपर पड़ीं उसे बहुत दुख हुआ। विपिन ने जैसी पत्नी के सपने देखे थे, वो बिल्कुल भी वैसी नहीं थी। चौड़ा सा मुंह, चपटी नाक, फूले से गाल विपिन को बिल्कुल पसंद नहीं आए। रंग भले ही उजला था, लेकिन उसके अलावा विपिन के सपनों की दुल्हन से वो एकदम अलग थी। ...

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद की जीवनी धनपत राय श्रीवास्तव या मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 को उत्तर प्रदेश में वाराणसी के निकट लमही नामक गाँव में हुआ था। मुंशी प्रेमचंद को हिंदी और उर्दू साहित्य के आधुनिक क्षेत्र के महान लेखकों में से एक माना जाता है। मृत्यु से पहले एक भयंकर बीमारी से ग्रस्त होने के कारण मुंशी प्रेमचंद जी को अपने जीवन के अंतिम दिनों में काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा था। सन 1910 में जमीरपुर के जिला मजिस्ट्रेट ने उनकी लघु कथाओं के संग्रह सोज-ए-वतन (राष्ट्र का विलाप) की रचना के लिए उन्हें दंडित किया था, इस रचना को राजद्रोहपूर्ण संग्रह कहा जाता था। इसके बाद, उन्होंने उपनाम के रूप “प्रेमचंद” लिखना शुरू कर दिया। प्रेमचंद ने नवाबराय शीर्षक के अन्तर्गत उर्दू में भी लेखन कार्य किया था। हिंदी साहित्य की दुनिया में यथार्थवाद को पेश करने का श्रेय, उनको ही दिया जाता है। सन् 1921 में उन्होंने महात्मा गांधी के आह्रान पर अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। एक संक्षिप्त अवधि के लिए, उन्होंने मुंबई फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के रूप में कार्य किया। व्यक्तिगत रूप से उन्होंने दो बार शादी की। वह आम लोगों की भाषा में लिखते थे और सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, गरीबी और उपनिवेशवाद जैसे मुद्दों का हिंदी और उर्दू साहित्य में प्रवेश का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। वह कृपणता (गरीबी) का जीवन जीते थे। मुंशी प्रेमचंद्र द्वारा लिखे गये उपन्यासों को बाद में कई फिल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों में प्रसारित किया गया। प्रसिद्ध सत्यजीत रे ने प्रेमचंद की लिखी हुई कृतियाँ जैसे ‘सद्गती’ और ‘शतरंज के खिलाडी’ पर आधारित दो फिल्में बनाई थी। प्रेमचंद ने कुछ नाटक भी लिखे थे। उनके कार्यों का अनुवाद कई ...

मंत्र: मुंशी प्रेमचंद की कहानी

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तेंतर: मुंशी प्रेमचंद की कहानी

लेखक: मुंशी प्रेमचंद 1 आखिर वही हुआ जिसकी आशंका थी; जिसकी चिंता में घर के सभी लोग विशेषतः प्रसूता पड़ी हुई थी. तीन पुत्रों के पश्चात् कन्या का जन्म हुआ. माता सौर में सूख गयी, पिता बाहर आंगन में सूख गये, और पिता की वृद्धा माता सौर द्वार पर सूख गयीं. अनर्थ, महाअनर्थ! भगवान् ही कुशल करें तो हो? यह पुत्री नहीं राक्षसी है. इस अभागिनी को इसी घर में आना था! आना ही था तो कुछ दिन पहले क्यों न आयी. भगवान् सातवें शत्रु के घर भी तेंतर का जन्म न दें. पिता का नाम था पंडित दामोदरदत्त, शिक्षित आदमी थे. शिक्षा-विभाग ही में नौकर भी थे; मगर इस संस्कार को कैसे मिटा देते, जो परम्परा से हृदय में जमा हुआ था, कि तीसरे बेटे की पीठ पर होनेवाली कन्या अभागिनी होती है, या पिता को लेती या माता को, या अपने को. उनकी वृद्धा माता लगी नवजात कन्या को पानी पी-पीकर कोसने, कलमुंही है, कलमुंही! न-जाने क्या करने आयी है यहां. किसी बांझ के घर जाती तो उसके दिन फिर जाते! दामोदरदत्त दिल में तो घबराये हुए थे, पर माता को समझाने लगे-अम्मां, तेंतर-वेतर कुछ नहीं, भगवान् की जो इच्छा होती है, वही होता है. ईश्वर चाहेंगे तो सब कुशल ही होगा; गानेवालियों को बुला लो, नहीं लोग कहेंगे, तीन बेटे हुए तो कैसे फूली फिरती थीं, एक बेटी हो गयी तो घर में कुहराम मच गया. माता-अरे बेटा, तुम क्या जानो इन बातों को, मेरे सिर तो बीत चुकी है, प्राण नहों में समाया हुआ है. तेंतर ही के जन्म से तुम्हारे दादा का देहांत हुआ. तभी से तेंतर का नाम सुनते ही मेरा कलेजा कांप उठता है. दामोदर-इस कष्ट के निवारण का भी कोई उपाय होगा? माता-उपाय बताने को तो बहुत है, पंडितजी से पूछो तो कोई-न-कोई उपाय बता देंगे; पर इससे कुछ होता नहीं. मैंने कौन-से अनुष्ठान नहीं किये, ...

मुंशी प्रेमचन्द्र की जीवनी

Table of Contents • • • • • • मुंशी प्रेमचंद का प्रारंभिक जीवन मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के समीप एक लम्ही नामक गांव में 31 जुलाई 1880 में हुआ था। उनके पिता एक डाक खाने में नौकरी किया करते थे, जिनका नाम अजायब राय था और उनकी मां का नाम आनंदी देवी था। मुंशी प्रेमचंद्र का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, जिन्हे बाद में मुंशी प्रेमचंद और नवाब राय के नाम से जाना जाने लगा। जब मुंशी प्रेमचंद 7 वर्ष के थे तब उनकी मां का देहांत हो गया।इनके 14 वर्ष की अवस्था में ही इनके पिता के भी देहांत हो जाने पर इनका प्रारंभिक जीवन अत्यंत कष्ट से बीता। पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार उनका विवाह 15 वर्ष की उम्र में हो गया जो सफल नहीं हो सका। मुंशी प्रेमचंद ने अपने साहित्य एवं रचनाओं के माध्यम से समाज को परिवर्तित करने के कई महत्वपूर्ण कार्य किए। वे आर्य समाज से काफी प्रभावित थे । इसके अतिरिक्त उन्होंने धार्मिक एवं सामाजिक आंदोलन में भी साहित्यिक रचनाओं के द्वारा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया एवं 1906 में अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुसार एक विधवा स्त्री शिवरानी देवी के साथ विवाह किया। उनकी तीन संताने हुई जिनका नाम श्रीपत राय, अमृत राय एवं कमला देवी श्रीवास्तव था। मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा मुंशी प्रेमचंद जी ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पूरी की थी। जीवन में शिक्षा के आरंभ होते ही उन्हें अपने गांव से दूर बनारस पढ़ने के लिए जाना पड़ता था। उनके अंदर पढ़ने की ललक साफ दिखाई पड़ती थी एवं वे बड़े होकर वकील बनना चाहते थे। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही रोकनी पड़ी एवं उन्होंने अपनी जीविका चलाने के उद्देश्य से दूसरों को पढ़ाने का कार्...