Pura pashan kal

  1. नवपाषाण काल (Navapashan kal) meaning in English
  2. पाषाण युग का इतिहास
  3. मध्यपाषाण काल
  4. मध्य पाषाण काल
  5. पाषाण काल प्रागैतिहासिक कालीन इतिहास


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नवपाषाण काल (Navapashan kal) meaning in English

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पाषाण युग का इतिहास

भारतीय पाषाण युग का संक्षिप्त विवरण पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति एक अद्भुत घटना है। मानव के जन्म और पृथ्वी पर पदार्पण के बाद से उसने विकास की अनेक मंजिलों को पार किया और आज विकास की इस ऊंचाई पर पहुंच गया है। किंतु मानव सभ्यता का विकास एक धीमी और क्रमिक घटना थी। मानव-जाति का इतिहास विश्व-सभ्यता के विकास का इतिहास है। प्राचीन मिस्र , यूनान , बेबीलोन , रोम , भारत , चीन आदि देशों की नदी-धाटियों में मानव सभ्यता का जन्म और विकास हुआ। मानव सभ्यता का इतिहास सिर्फ पाँच हजार वर्ष पुराना है। यह मानव-सभ्यता का प्रारंभिक काल है। हाल तक लोगों का विश्वास था कि मनुष्य एक ईश्वरीय सृजन है , संसार के विभिन्न धर्मग्रंथों से भी इसकी पुष्टि होती है। किन्तु चार्ल्स डार्विन (1859 ई०) के विकासवाद के सिद्धान्त ने इस मत का खंडन किया। उसके अनुसार मानव-सभ्यता का विकास धीरे-धीरे हुआ है और यह विकास का प्रतिफल है। इसके अनुसार प्रारंभ में पृथ्वी का तापमान इतना अधिक था कि इस पर किसी जीवधारी का रहना संभव नहीं था। शनैः शनैः पृथ्वी का तापमान कम होने लगा और परिवर्तन होने लगा। हजारों वर्षों के इन परिवर्तनों के पश्चात् पृथ्वी की जलवायु जीवोत्पत्ति के लिए अनुकूल हो गई। किंतु कुछ समय तक जीव उत्पन्न नहीं हुए। यह युग ‘ जीव-विहीन ' युग के नाम से प्रसिद्ध है। जीव-विहीन युग के अन्त में पृथ्वी पर सर्वप्रथम पनीले (पानी में रहने वाले) जन्तुओं ने जन्म लिया, ये अस्थिविहीन थे। इन पनीले जन्तुओं की काया में समयानुकूल कई परिवर्तन हुए और हजारों वर्षों के बाद इसने मछली का रूप धारण किया। डार्विन के अनुसार , यह जीवन के विकास की दूसरी अवस्था थी। तीसरी अवस्था में स्थल पर वृहद् शरीर वाले जानवर उत्पन्न हुए। पृथ्वी पर जंगल उत्पन्न हाने लग...

मध्यपाषाण काल

पुरापाषाण युग के पश्चात मध्य पाषाण काल आया। जिसे उत्तरीय प्रस्तर का काल भी कहा जाता है। जो लगभग 10000 इसवी पूर्व से 7000 इसवी पूर्व तक का काल है। मध्य पाषाण काल में पत्थर के बहुत छोटे औजार होते थे। मध्य पाषाण काल के प्रमुख औजार फलक, पॉइंट, खुरचन, उत्कीर्णक, चंद्राकार, त्रिभुजाकार, वेधनी जैसे कई सूक्ष्म पाषाण उपकरण थे। मध्यपाषाण काल ( दफन Théviec की - टूलूज़ के संग्रहालय [ ] • Afrikaans • العربية • Asturianu • Azərbaycanca • تۆرکجه • Башҡортса • Беларуская • Беларуская (тарашкевіца) • Български • বাংলা • Brezhoneg • Bosanski • Català • Čeština • Чӑвашла • Cymraeg • Dansk • Deutsch • Ελληνικά • English • Esperanto • Español • Eesti • Euskara • فارسی • Suomi • Français • Nordfriisk • Frysk • Gaeilge • Gàidhlig • Galego • עברית • Hrvatski • Magyar • Հայերեն • Bahasa Indonesia • Ido • Íslenska • Italiano • 日本語 • Jawa • ქართული • Қазақша • 한국어 • Kurdî • Кыргызча • Latina • Lëtzebuergesch • Lingua Franca Nova • Ladin • Lietuvių • Latviešu • Македонски • Монгол • Bahasa Melayu • नेपाली • Nederlands • Norsk nynorsk • Norsk bokmål • Occitan • Polski • پښتو • Português • Română • Русский • Sardu • Srpskohrvatski / српскохрватски • Simple English • Slovenčina • Slovenščina • Shqip • Српски / srpski • Sunda • Svenska • தமிழ் • తెలుగు • Тоҷикӣ • ไทย • Tagalog • Türkçe • Татарча / tatarça • Українська • اردو • Oʻzbekcha / ўзбекча • Tiếng Việt • West-Vlams • Winaray • 吴语 • მარგალური • 中文 • Bân-lâm-gú • 粵語

मध्य पाषाण काल

मध्य पाषाण काल ( 10 हजार वर्ष पूर्व से 7000/6000 वर्ष पूर्व तक ) यह काल पुरापाषाण व नवपाषाण काल के मध्य का संक्रमण का काल है ।इस काल तक हिमयुग पूरी तरह से समाप्त हो चुका था तथा जलवायु गर्म तथा आद्र हो चुकी थी । जिसका प्रभाव पशु-पक्षी तथा मानव समूह पर पङा। बङे पाषाण उपकरणों के साथ-2 लघु पाषाण उपकरण का प्रचलन भी मिलता है । ये उपकरण 1-8 से.मी. लंबे , विभिन्न आकार वाले – जैसे त्रिकोण , नवाचंद्राकार , अर्द्धचंद्राकार , ब्लेड आदि मिलते हैं। मध्य पाषाण काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी मनुष्य को पशुपालक बनाना । इस काल में आखेट के क्षेत्र में भी परिष्कार हुआ, वह तीक्ष्ण तथा परिष्कृत औजारों का प्रयोग करने लगा । प्रक्षेपास्र तकनीकि प्रणाली का विकास ( छोटे पक्षियों को मारने वाले छोटे उपकरण ) इसी काल में हुआ। तीर – कमान का विकास भी इसी काल में हुआ । बङे पशुओं के साथ-साथ छोटे पशु – पक्षियों एवं मछलियों के शिकार में विकास संभव हुआ। मध्य पाषाण कालीन स्थल • राजस्थान • बागोर ( भीलवाङा ) – बागोर एवं आदमगढ से पशुपालन के प्राचीनतम राक्ष्य मिले हैं . जिनका काल लगभग 5500 ई. पू. माना गया है। लेकिन यह अपवाद है क्योंकि पशुपालन का प्रारंभ नवपाषाण काल से माना जाता है। बागोर से पाषाण उपकरणों के साथ- साथ मानव कंकाल एवं परवर्ती काल के लोहे उपकरण भी प्राप्त हुए हैं। • तिलवार • मध्यप्रदेश • आदमगढ • उत्तरप्रदेश • बेलन घाटी • सरायनाहरराय–यहाँ से मानवीय आक्रमण के युद्ध का प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुआ है, यहाँ से स्तंभ गर्त (आवास हेतु झोंपङियों का साक्ष्य ) के साक्ष्य मिले हैं तथा गर्त चूल्हे के साक्ष्य भी मिले हैं । सरायनाहरराय से 8 संयुक्त गर्त चूल्हे प्राप्त हुये हैं जो संयुक्त परिवार प्रथा का उदाहरण...

पाषाण काल प्रागैतिहासिक कालीन इतिहास

Pashan kal : पाषण युग यानी पत्थरों का युग, जिस युग में मानव के द्वारा पत्थर के बने औजारों का उपयोग प्रमुखता से किया उस युग पाषण युग कहा जाता है| पाषाण काल (pashan kal) को प्रागैतिहासिक काल में अंतर्गत रखा जाता है क्योंकी इस काल के बारे में जानकारी का स्रोत्र पुरातात्विक साक्ष्य है| पत्थरों के उपकरण बनाने तथा उसे इस्तेमाल करने का विश्व में सबसे प्राचीनतम साक्ष्य इथोपिया और केन्या से प्राप्त हुई है संभवतः ऑस्ट्रेलोपिथेकस द्वारा सबसे पहले पत्थर के औजार बनाए गए थे, किन्तु इसका श्रेय होमो हैबिलस नामक प्रजाति को दिया जाता है| भारत में प्रागैतिहासिक संस्कृति व पाषणकालीन वस्तियों की जानकारी की शुरुआत 1863 ई० में जियोलाजिकल सर्वे से संवंधित अधिकारी रॉबर्ट ब्रूसफ्रूड तथा मार्टिन व्हीलर के प्रयासों से हुआ| 1865 ई० में जॉन लुब्बाक ने अपनी पुस्तक ‘प्रीहिस्टोरिक टाइम्स’ में पाषण काल को दो भागों में विभाजित किया था| पुरापाषाण काल और नवपाषाण काल अतः इन दोनों शब्दों पुरापाषाण काल और नवपाषाण काल का प्रयोग सर्वप्रथम जॉन लुब्बाक द्वारा किया गया| लेकिन सामान्य तौर पर इसे तीन भागों में विभाजित किया जाता है| • पुरापाषाण काल • मध्य पाषाण काल • नव पाषाण काल इन सब के बारे में संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास करें तो पुरापाषाण काल में पुरापाषाण कालीन लोग नेग्रिटो जनजाति के थे| लोग खानाबदोश यानी घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करते थें और जीवका मुख्य आधार आखेट यानी की शिकार था हालाँकि आखेटक के साथ-साथ खाद्य संग्राहक होना इस काल की विशेषता है| कृषि व पशुपालन तथा स्थाई जीवन का प्रारंभ नहीं हुआ था बता दें की आग की खोज पुरापाषाण काल में ही किया गया था किन्तु लोगों को आग का व्यावहारिक उपयोग के बारे में कोई जानकारी नही...