रंगभूमि उपन्यास

  1. रंगभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद
  2. रंगभूमि उपन्यास
  3. Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand
  4. Rangbhumi ( रंगभूमि ) Hindi PDF
  5. रंगभूमि (उपन्यास)
  6. उपन्यास का अर्थ एवं परिभाषा


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रंगभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 42 अदालत ने अगर दोनों युवकों को कठिन दंड दिया, तो जनता ने भी सूरदास को उससे कम कठिन दंड न दिया। चारों ओर थुड़ी-थुड़ी होने लगी। मुहल्लेवालों का तो कहना ही क्या, आस-पास के गाँववाले भी दो-चार खोटी-खरी सुना जाते थे-माँगता तो है भीख, पर अपने को कितना लगाता है? जरा चार भले आदमियों ने मुँह लगा लिया, तो घमंड के मारे पाँव धरती पर नहीं रखता। सूरदास को मारे शर्म के घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया। इसका एक अच्छा फल यह हुआ कि बजरंगी और जगधर का क्रोध शांत हो गया। बजरंगी ने सोचा, अब क्या मारूँ-पीटूँ, उसके मुँह में तो यों ही कालिख लग गई; जगधर की अकेले इतनी हिम्मत कहाँ! दूसरा फल यह हुआ कि सुभागी फिर भैरों के घर जाने को राजी हो गई। उसे ज्ञात हो गया कि बिना किसी आड़ के मैं इन झोंकों से नहीं बच सकती। सूरदास की आड़ केवल टट्टी की आड़ थी। एक दिन सूरदास बैठा हुआ दुनिया की हठधर्मी और अनीति का दुखड़ा रो रहा था कि सुभागी बोली-भैया, तुम्हारे ऊपर मेरे कारन चारों ओर से बौछार पड़ रही है, बजरंगी और जगधर दोनों मारने पर उतारू हैं, न हो तो मुझे भी अब मेरे घर पहुँचा दो। यही न होगा, मारे-पीटेगा, क्या करूँगी, सह लूँगी, इस बेआबरुई से तो बचूँगी? भैरों तो पहले ही से मुँह फैलाए हुए था, बहुत खुश हुआ, आकर सुभागी को बड़े आदर से ले गया। सुभागी जाकर बुढ़िया के पैरों पर गिर पड़ी और खूब रोई। बुढ़िया ने उठाकर छाती से लगा लिया। बेचारी अब आँखों से माजूर हो गई थी। भैरों जब कहीं चला जाता, तो दूकान पर कोई बैठनेवाला न रहता, लोग अंधोरे में लकड़ी उठा ले जाते थे। खाना तो खैर किसी तरह बना लेती थी, किंतु इस नोच-खसोट का नुकसान न सहा जाता था। सुभागी घर की देखभाल तो करेगी! रहा भैरों, उसके हृदय में अब छल-कपट का लेश भी न ...

रंगभूमि उपन्यास

उपन्यास सम्राट प्रेमचंद (1880-1936) का पूरा साहित्य, भारत के आम जनमानस की गाथा है. विषय, मानवीय भावना और समय के अनंत विस्तार तक जाती इनकी रचनाएँ इतिहास की सीमाओं को तोड़ती हैं, और कालजयी कृतियों में गिनी जाती हैं. रंगभूमि (1924-1925) उपन्यास ऐसी ही कृति है. नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन तथा स्त्री दुदर्शा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है. परतंत्र भारत की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक समस्याओं के बीच राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण यह उपन्यास लेखक के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बहुत ऊँचा उठाता है. देश की नवीन आवश्यकताओं, आशाओं की पूर्ति के लिए संकीणर्ता और वासनाओं से ऊपर उठकर नि:स्वार्थ भाव से देश सेवा की आवश्यकता उन दिनों सिद्दत से महसूस की जा रही थी. रंगभूमि की पूरी कथा इन्हीं भावनाओं और विचारों में विचरती है. कथा का नायक सूरदास का पूरा जीवनक्रम, यहाँ तक कि उसकी मृत्यु भी राष्ट्रनायक की छवि लगती है. पूरी कथा गाँधी दर्शन, निष्काम कर्म और सत्य के अवलंबन को रेखांकित करती है. यह संग्रहणीय पुस्तक कई अर्थों में भारतीय साहित्य की धरोहर है. कहानी में सूरदास के अलावा सोफी, विनय, जॉन सेवक, प्रभु सेवक का किरदार भी अहम है. सोफी मिसेज जॉन सेवक, ताहिर अली, रानी, डाक्टर गांगुली, क्लार्क, राजा साहब, इंदु, ईश्वर सेवक, राजा महेंद्र कुमार सिंह, नायकरामघीसू, बजगंरी, जमुनी, जाह्नवी, ठाकुरदीन, भैरों जैसे कईं किरदार हैं. शहर अमीरों के रहने और क्रय-विक्रय का स्थान है. उसके बाहर की भूमि उनके मनोरंजन और विनोद की जगह है. उसके मध्य भाग में उनके लड़कों की पाठशालाएं और उनके मुकदमेबाजी के अखाड़े होते हैं, जहाँ न्याय के बहाने गरीबों का ग...

Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand

रंगभूमि मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास (Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand) Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand Ka Upanyas, Rangbhoomi Munshi Premchand Ki Kahani, Ebook Read Online Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand Rangbhoomi By Munshi Premchand Chapter List Chapter 1 Chapter 2 Chapter 3 Chapter 4 Chapter 5 Chapter 6 Chapter 7 Chapter 8 Chapter 9 Chapter 10 Chapter 11 Chapter 12 Chapter 13 Chapter 14 Chapter 15 Chapter 16 Chapter 17 Chapter 18 Chapter 19 Chapter 20 Chapter 21 Chapter 22 Chapter 23 Chapter 24 Chapter 25 Chapter 26 Chapter 27 Chapter 28 Chapter 29 Chapter 30 Chapter 31 Chapter 32 Chapter 33 Chapter 34 Chapter 35 Chapter 36 Chapter 37 Chapter 38 Chapter 39 Chapter 40 Chapter 41 Chapter 42 Chapter 43 Chapter 44 Chapter 45 Chapter 46 Chapter 47 Chapter 48 Chapter 49 Chapter 50

Rangbhumi ( रंगभूमि ) Hindi PDF

Rangbhumi, Katha samrat Premchand (1880-1936) ka pura sahity, Bharat ke aam janmans ki gatha hai. Vishay, manviya bhavna aur samay ke anant vistar tk jati inki rchnaye itihas ki simao ko todati hain, Aur kaljayi krtiyo me gini jati hai. Rangbhumi (1924-1925) upnyas aisi hi krti hai. Naukrshahi aur Punjivad ke sath jansngharsh ka tandav; saty, nishtha aur ahinsa ke prti aagrah, gramin jeevan aur stree dudrsha ka bhayavah chitr yha ankit hai. Partntra Rangbhumi ki puri katha inhi bhavnao aur vicharo me vicharti hai. Katha ka nayak Surdas ka pura jevankram, yha tk ki uski mrityu bhi rashtrnayak ki chhavi lgti hai. Puri ktha Gandhi darshan, nishkam karm aur saty ke avlmbn ko rekhankit krtee hai. Yah sangrhniy pustak kyi artho me Bharatiya Sahity ki dharohr hai. Kahani me Surdas ke alwa Sofi, Vinay, Jaun sevak, Prabhu sevak ka kirdaar bhi eham hai. Sofi misses Jaun sevak, Tahir Ali, Rani, Doctor Ganguli, Clerk, Raja Sahab, Indu, Ishwar sevak, Raja mahendr kumar singh, Nayakram ghisu, Bajrangi, Jamuni, Janvi, Thakurdin, Bhairo jaise kyi kirdar hai. • Upnyas ka Saransh Godam ke Picche ki or ek vistrt maidan tha. Yha aas-pas ke janvar chrne aaya krte the. Jaun sevak yah jamin lekr yha cigarette bnane ka ek karkhana kholna chahte the. Jamin Surdas ki hai. Vah apni jamin cigarette ka karkhana lgane ke liye nhi dena chahta. use kyi tarah ka lalch diye jate hai lekin vah jamin dene ko raji nhi to kya Jaun sevak bina karkhana lgaye hi chle jate hain? Ya Surdas se jbrn jamin chhin jati ...

रंगभूमि (उपन्यास)

रंगभूमि उपन्यास - रंगभूमि लेखक-मुंशी प्रेमचंद पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष व बदलाव की महान गाथा है प्रेमचंद की ‘रंगभूमि’। उपन्यास - रंगभूमि लेखक-मुंशी प्रेमचंद पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष व बदलाव की महान गाथा है प्रेमचंद की ‘रंगभूमि’ उपन्यास सम्राट प्रेमचंद (1880-1936) का पूरा साहित्य, भारत के आम जनमानस की गाथा है. विषय, मानवीय भावना और समय के अनंत विस्तार तक जाती इनकी रचनाएँ इतिहास की सीमाओं को तोड़ती हैं, और कालजयी कृतियों में गिनी जाती हैं. रंगभूमि (1924-1925) उपन्यास ऐसी ही कृति है. नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन तथा स्त्री दुदर्शा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है. परतंत्र भारत की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक समस्याओं के बीच राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण यह उपन्यास लेखक के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बहुत ऊँचा उठाता है. देश की नवीन आवश्यकताओं, आशाओं की पूर्ति के लिए संकीणर्ता और वासनाओं से ऊपर उठकर नि:स्वार्थ भाव से देश सेवा की आवश्यकता उन दिनों सिद्दत से महसूस की जा रही थी. रंगभूमि की पूरी कथा इन्हीं भावनाओं और विचारों में विचरती है. कथा का नायक सूरदास का पूरा जीवनक्रम, यहाँ तक कि उसकी मृत्यु भी राष्ट्रनायक की छवि लगती है. पूरी कथा गाँधी दर्शन, निष्काम कर्म और सत्य के अवलंबन को रेखांकित करती है. यह संग्रहणीय पुस्तक कई अर्थों में भारतीय साहित्य की धरोहर है. कहानी में सूरदास के अलावा सोफी, विनय, जॉन सेवक, प्रभु सेवक का किरदार भी अहम है. सोफी मिसेज जॉन सेवक, ताहिर अली, रानी, डाक्टर गांगुली, क्लार्क, राजा साहब, इंदु, ईश्वर सेवक, राजा महेंद्र कुमार सिंह, नायकरामघीसू, बजगंरी, जमुनी, जाह्नवी, ठाकुरदीन, भैरों जै...

उपन्यास का अर्थ एवं परिभाषा

Install - vidyarthi sanskrit dictionary app उपन्यास का अर्थ एवं परिभाषा - उपन्यास के तत्व एवं प्रकार, उपन्यास का इतिहास एवं प्रमुख उपन्यासकार || Hindi Novels • BY:RF Temre • 4065 • 0 • Copy • Share उपन्यास क्या है इसका अर्थ "उपन्यस्येत इति उपन्यास:" उपन्यास शब्द का अर्थ है सामने रखना "उपन्यास प्रसादनम्" उपन्यास का अर्थ है किसी वस्तु को इस प्रकार से संजोकर रखना जिससे दूसरे उसे देखकर प्रसन्न हों, किन्तु आज का उपन्यास अंग्रेजी के नॉवेल (Novel) शब्द का पर्यायवाची बन गया है। संस्कृत में उपन्यास के लिए नॉवेल शब्द का प्रयोग हुआ है। वस्तुतः उपन्यास नित्य नवीन एवं रमणीय शैली में वस्तु का अभिनव स्वरूप प्रस्तुत हृदय-कलिका को रसप्लावित करता है। डॉ. भागीरथ मिश्र के अनुसार उपन्यास है - "युग की गतिशील पृष्ठभूमि पर सहज शैली में स्वाभाविक जीवन की एक पूर्ण झाँकी प्रस्तुत करने वाला गद्य काव्य उपन्यास कहलाता है।" आधुनिक युग में उपन्यास एक सर्वाधिक प्रचलित विधा है, यह आधुनिक युग का महाकाव्य बन गया है। जिसमें जीवन की संपूर्ण झाँकी सरस रुप में प्रस्तुत की जाती है। उपन्यास के तत्व 1. कथावस्तु या घटनाक्रम 2. पात्र या चरित्र-चित्रण 3. कथोपकथन 4. शैली 5. देशकाल या वातावरण 6. उद्देश्य 1. कथावस्तु या घटनाक्रम उपन्यास की मूल कहानी को 'कथावस्तु' कहते हैं। प्रासांगिक कथाएँ इस मूल कहानी को सुरुचिपूर्ण बनाकर उद्देश्य की ओर ले जाती है। कुछ प्रयोगवादी उपन्यासकार घटनाक्रम का समायोजन अस्वाभाविक मानते हैं। उनके अनुसार जीवन की स्वाभाविकता का चित्रण उपन्यास में साकार होना चाहिए। जीवन की घटनाओं का कोई क्रम नहीं होता, इसी प्रकार उपन्यास में संघटित घटनाओं का भी क्रमबद्ध होना आवश्यक नहीं है। कथानक अनेक प्रकार के हो स...