संतान को पिता से कितने जींस प्राप्त होते हैं

  1. वंशानुक्रम का अर्थ, परिभाषा, सिद्धांत/नियम
  2. आनुवंशिकी: मेंडल के आनुवंशिकता के नियम Mendel’s Law of Inheritance
  3. संतान को पिता से कितने प्रतिशत जीन्स प्राप्त होते हैं/ Doubt Answers
  4. संतान गोपाल
  5. Chanakya Niti In Hindi Motivation Hindi Quotes Education And Culture Conduct Of Person Is Excellent And Exemplary
  6. Chanakya Niti Motivational Quotes These Habits Of Parents Have A Bad Effect On The Child
  7. आनुवंशिक रोग


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वंशानुक्रम का अर्थ, परिभाषा, सिद्धांत/नियम

वंशानुक्रम का अर्थ (vanshanukram kya hai) vanshanukram ka arth paribhasha siddhant;सामान्यतया वंशानुक्रम का अर्थ है माता-पिता से प्राप्त गुण या तत्व। इसमें उन सभी अनुभवों का बोध होता है जो कि व्यक्ति को जन्म से मिलते हैं। प्रायः बालक का रंग, रूप, बुद्धि आदि माता-पिता से मिलती-जुलती होती है। एक माता-पिता से उत्पन्न बालकों की शक्ल भी प्रायः मिलती-जुलती होती है। बालक को अपने माता-पिता से शारीरिक तथा मानसिक गुण प्राप्त होते हैं क्योंकि ये अर्जित गुण माता-पिता से संतान मे अवतरित होते हैं। किन्तु कभी-कभी ठीक इसके विपरीत भी होता है। सामान्य अर्थों में वंशानुक्रम का तात्पर्य है कि जैसे-- माता-पिता हैं वैसी सन्तान होगी। यदि माता-पिता स्वस्थ और बुद्धिमान हैं तो सन्तान भी स्वस्थ और बुद्धिमान होनी चाहिए। पर इसके विपरीत अपवाद स्वरूप बुद्धिमान माता-पिता की मंद-बुद्धि सन्तान भी देखी गई है तथा मन्दबुद्धि माता-पिता की बुद्धिमान सन्तान भी। ड्रेवर ने वंशानुक्रम का अर्थ स्पष्ट करते हुये लिखा है," कि वंशानुक्रम माता-पिता से बच्चों तक शारीरिक और मानसिक लक्षणों का संक्रमण है। जीव-विज्ञान के अनुसार वंशानुक्रम फलित रजागु के भावी गुणों में विद्यमान गुणों का योग हैं। इसी आधार पर यह मान्यता बनी है कि व्यक्ति जो कुछ भी होता हैं, वह उसके पूर्वजों के शारीरिक और मानसिक तत्व होते हैं जो उसे माता-पिता से विरासत में मिलते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का शरीर कोशाओं से बनता हैं। गर्भावस्था की प्राथमिक स्थिति में भ्रूण की रचना केवल एक ही कोश की होती है जिसे युक्ता कहते हैं। यह पुरूष के शुक्र तथा स्त्री के अण्ड के संयोग होने पर निर्मित होती है। शुक्र और अण्ड दोनों ही बीज कोशों के रूप में विशेष गुणों और दोषों के वाहक ...

आनुवंशिकी: मेंडल के आनुवंशिकता के नियम Mendel’s Law of Inheritance

प्रत्येक जीव में बहुत से ऐसे गुण होते हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी माता-पिता अर्थात् जनकों से उनके संतानों में संचरित होते रहते हैं। ऐसे गुणों को आनुवंशिक गुण (Hereditary characters) या पैतृक गुण कहते हैं। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जीवों के मूल गुणों का संचरण आनुवंशिकता (Heredity) कहलाता है। मूल गुणों के संचरण के कारण ही प्रत्येक जीव के गुण अपने जनकों के गुण के समान होते हैं। इन गुणों का संचरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जनकों के युग्मकों (Gametes) के द्वारा होता है। अतः जनकों से उनके संतानों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी युग्मकों के माध्यम से पैतृक गुणों का संचरण आनुवंशिकता कहलाता है। आनुवंशिकता एवं विभिन्नता (variations) का अध्ययन जीव-विज्ञान की जिस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है, उसे आनुवंशिकी या जेनेटिक्स (Genetics) कहते हैं। ग्रेगर जॉन मेंडल (Gregor John Mendel) ने अपने वैज्ञानिक खोजों से आधुनिक आनुवंशिकी (Modern genetics) की नींव डाली। इसीलिए उन्हें आनुवंशिकी का पिता (Father of Genetics) कहा जाता है। Table of Contents • • • • • • • • • मेंडल के आनुवंशिकता के नियम Mendel’s Law of Inheritance ग्रेगर जॉन मेंडल (Gregor John Mendel, 1822-84) आस्ट्रिया देश के ब्रून (Brunn) नामक स्थान में ईसाइयों के एक मठ के पादरी थे। उन्होंने अपने वैज्ञानिक खोजों से आधुनिक आनुवंशिकी की नीव डाली। मटर के पौधों पर किए गए अपने प्रयोगों के निष्कर्षों को उन्होंने 1866 ई. में Annual proceedings of the natural history society or brunn में प्रकाशित कराया, परन्तु विज्ञान जगत में 34 वर्षों तक इस पर ध्यान नहीं दिया गया। उनके मृत्यु के पश्चात् 1900 ई. में इनके प्रयोगों के निष्कर्ष को वैज्ञानिकों द्वारा मान्यता मिली। म...

संतान को पिता से कितने प्रतिशत जीन्स प्राप्त होते हैं/ Doubt Answers

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संतान गोपाल

वैदिक शास्त्रों के अनुसार, मनचाहा फल प्राप्त करने के लिए कई विभिन्न उपाय हैं जैसे अनुष्ठान, हवन, जप, तपस्या आदि। ये सभी तरीकों में मंत्रों का जाप किया जाता है और इसका प्रभाव जातक के जीवन पर पड़ता है। वास्तव में मंत्र सिर्फ शब्दों का संलग्न ही नहीं है अपितु ये शब्दों की ध्वनि भी है। इसका प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि जातक को उसकी भक्ति और मंत्र उच्चारण के दौरान उसके मन में कितनी श्रद्धा है। जो माता-पिता संतान की चाह रखते हैं, लेकिन किसी कारणवश वे इस सुख से वंचित हैं, ऐसे लोगों के लिए भी संतानप्राप्ति के कई मंत्र मौजूद हैं। इनमें सबसे प्रभावशाली मंत्र संतान गोपाल मंत्र है। ऐसे कई शास्त्र हैं, जहां इस मंत्र के बारे में उच्च सम्मान के साथ बात किया गया है। इस मंत्र के चमत्कारी प्रभावों पर सदियों से चर्चा और प्रदर्शन किया जा रहा है। भगवान कृष्ण को समर्पित यह मंत्र अत्यंत प्रभावी है। इस मंत्र का उच्चारण करने से जातक को अच्छे गुणों वाले संतान की प्राप्ति की कामना पूर्ण होने की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन इस मंत्र का जप करते समय जातक के मन में पूर्ण भक्ति होनी चाहिए क्योंकि इस मंत्र का प्रभाव ज्यादातर कर्ता की आस्था पर निर्भर करता है। संतान गोपाल मंत्र का जाप करते समय भी व्यक्ति को सात्विक रहना चाहिए। सर्वोत्तम प्रभाव प्राप्त करने के लिए पूरे श्रद्धा भाव से मंत्र का निरंतर जाप करना चाहिए। संतान प्राप्ति के लिए कई जातक अन्य अनुष्ठानों और हवन के साथ इस मंत्र का उच्चारण करते हैं। जबकि जल्द बनने वाले माता-पिता इसलिए यह मंत्र उच्चारण करते हैं ताकि गर्भावस्था सामान्य रहे और संतानप्राप्ति में किसी तरह की अड़चनें ना आएं। इस मंत्र के जाप से जो सकारात्मक ऊर्जा निकलती है, वह बच्चे और गर्भ...

Chanakya Niti In Hindi Motivation Hindi Quotes Education And Culture Conduct Of Person Is Excellent And Exemplary

Chanakya Niti For Motivation in Hindi: चाणक्य नीति के अनुसार संतान यदि योग्य हो, तो व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. संतान को योग्य बनाने की प्रथम जिम्मेदारी माता पिता की है. इस जिम्मेदारी को हर माता पिता को बहुत ही गंभीरता से पूरी करनी चाहिए. जो माता पिता इस जिम्मेदारी पर खरा उतरते हैं, वे भाग्यशाली होते हैं, ऐसे माता पिता को मान सम्मान भी प्राप्त होता है. चाणक्य के अनुसार योग्य संतान सिर्फ माता पिता का ही सिर गर्व से ऊंचा नहीं करता है बल्कि राष्ट्र के निर्माण में भी अपना अहम योगदान प्रदान करता है. संतान को योग्य बनाने में घर के वातावरण की सबसे अहम भूमिका होती है. इसलिए सर्वप्रथम घर में आर्दश वातावरण बनाने का प्रयास करना चाहिए. क्योंकि संतान सबसे पहले अपने आसपास होने वाली घटना और चीजों से अधिक प्रभावित होती है. इसके साथ ही इन बातों पर ध्यान देना चाहिए- संस्कार- चाणक्य नीति कहती है कि संस्कार बच्चों के भविष्य का निर्माण करते हैं. संस्कार संतान को अपने माता पिता से ही मिलते हैं. इसलिए माता पिता को हमेशा बच्चों को श्रेष्ठ गुणों को अपनाने पर बल देना चाहिए. श्रेष्ठ गुण को अपनाकर ही जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है. इसलिए संस्कार के मामले में माता पिता को कोई समझौता नहीं करना चाहिए. हर संभव प्रयासों से बच्चों को अच्छे संस्कार देने का प्रयास करना चाहिए. शिक्षा- चाणक्य नीति कहती है कि संस्कार के बाद बच्चों की शिक्षा पर माता पिता को विशेष ध्यान देना चाहिए. शिक्षा और संस्कार एक दूसरे के पूरक हैं. शिक्षा जब संस्कारों से युक्त होती है, तो व्यक्ति का आचरण श्रेष्ठ और अनुकरणीय होता है. ऐसे व्यक्ति को हर स्थान पर सम्मान भी प्राप्त होता है. इसलिए माता पिता को संतान को उत्तम...

Chanakya Niti Motivational Quotes These Habits Of Parents Have A Bad Effect On The Child

Chanakya Niti In Hindi : चाणक्य नीति के अनुसार माता-पिता को संतान की शिक्षा, संस्कार और सेहत को लेकर सदैव गंभीर रहना चाहिए. बच्चों के लिए उनके माता-पिता ही पहले शिक्षक होते हैं. बच्चे पर माता-पिता का सबसे अधिक प्रभाव देखने को मिलता है. आचार्य चाणक्य के अनुसार बच्चों को योग्य बनाने के लिए माता-पिता को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए. ध्यान रहें बच्चें जहां माता-पिता की अच्छी आदतों को ग्रहण करते हैं, वहीं गलत आदतों से भी बहुत जल्द प्रभावित होते हैं. इसलिए बच्चों के मामले में चाणक्य की इन बातों को नहीं भूलना चाहिए- आपस में मधुरता से बात करें- चाणक्य नीति कहती है कि व्यक्ति की भाषा और बोली जब मधुर होती है तो वो सभी का प्रिय होता है. ऐसे लोग दूसरों से बड़े से बड़े कार्य लेने और कराने में सक्षम होते हैं. संतान की भाषा-बोली जितनी मधुर और प्रभावशाली होगी, उसकी सफलता की संभावना उतनी ही अधिक होती है. मधुरता सभी को प्रिय है. इसलिए माता-पिता को आपस में मधुरता से वार्तालाप करनी चाहिए. शब्दों के चयन पर ध्यान देना चाहिए. ताकि बच्चे इन्हें सुनें तो इनका प्रभाव सकारात्मक पड़े. जो माता-पिता इस बात का ध्यान नहीं रखते हैं उनकी संतान को सफलता पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. घर का माहौल- चाणक्य नीति के अनुसार घर के माहौल का सबसे अधिक प्रभाव बच्चों पर पड़ता है. आरंभ से ही यदि इस बात का ध्यान रखा जाए तो संतान की योग्य बनने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है. घर का माहौल आर्दश बनाने की जिम्मेदारी माता पिता की है. घर में माता-पिता को बच्चों के सामने गलत बर्ताब नहीं करना चाहिए. लड़ाई-झगड़ा आदि नहीं करना चाहिए. घर का माहौल शांत होना चाहिए. इसका प्रभाव बच्चों पर सकारात्मक पड़ता है. और वे जीवन में...

आनुवंशिक रोग

आनुवंशिक रोग (जेनेटिक डिसऑर्डर) कहलाते हैं। कुछ ऐसे रोग भी हैं जो आनुवंशिकी तथा वातावरण दोनों के प्रभावों के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं। जीवों में नर के जीन में से एक या कुछ के दोषोत्पादक होने के कारण संतान में वे ही दोष उत्पन्न हो जाते हैं। कुछ दोषों में से कोई रोग उत्पन्न नहीं होता, केवल संतान का शारीरिक संगठन ऐसा होता है कि उसमें विशेष प्रकार के रोग शीघ्र उत्पन्न होते हैं। इसलिए यह निश्चित जानना कि रोग का कारण आनुवंशिकता है या प्रतिकूल वातावरण, सर्वदा साध्य नहीं है। आनुवंशिक रोगों की सही गणना में अन्य कठिनाइयाँ भी हैं। उदाहरणार्थ; बहुत से जन्मजात रोग अधिक आयु हो जाने पर ही प्रकट होते हैं। दूसरी ओर, कुछ आनुवंशिक दोषयुक्त बच्चे जन्म लेते ही मर जाते हैं। तिरोधायक रोगकारक अनुक्रम • 1 अनुवांशिक रोगों के उदाहरण • 1.1 चक्षुरोग • 2 चर्मरोग • 2.1 विकृतांग • 2.2 रक्तदोष • 2.3 चयापचय रोग • 2.4 मानसिक रोग • 3 इन्हें भी देखें • 4 बाहरी कड़ियाँ अनुवांशिक रोगों के उदाहरण [ ] आनुवंशिक रोगों के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं: चक्षुरोग [ ] तिरोधायक जीन के दोष से मोतियाबिंद (आँख के ताल का अपारदर्शक हो जाना), अति निकटदृष्टि (दूर की वस्तु का स्पष्ट न दिखाई देना), ग्लॉकोमा (आँख के भीतर अधिक दाब और उससे होनेवाली अंधता), दीर्घदृष्टि (पास की वस्तु स्पष्ट न दिखाई पड़ना) इत्यादि रोग होते हैं। तिरोहित जीन के कारण विवर्णता (संपूर्ण शरीर के चमड़े तथा बालों का श्वेत हो जाना), ऐस्टिग्मैटिज्म (एक दिशा की रेखाएँ स्पष्ट दिखाई पड़ना और लंब दिशा की रेखाएँ अस्पष्ट), केराटोकोनस (आँख के डले का शंकुरूप होना), इत्यादि रोग उत्पन्न होते हैं। लिंगग्रथित जीन जनित चक्षुरोगों में, जो पुरुषों ...