वाल्मीकि की जीवन कथा

  1. दलित साहित्य के महानायक : ओमप्रकाश वाल्मीकि – Dr. Narendra Valmiki – Sahityapedia
  2. महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा
  3. Maharishi Valmiki Biography in Hindi : महर्षि वाल्मीकि की जीवनी
  4. महर्षि ऋषि वाल्मीकि का पुराना नाम क्या था
  5. रामायण (प्रसंग
  6. महर्षि दधीचि की कहानी
  7. वाल्मीकि जी का जीवन परिचय
  8. राजा भर्तृहरि की सम्पूर्ण कहानी


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दलित साहित्य के महानायक : ओमप्रकाश वाल्मीकि – Dr. Narendra Valmiki – Sahityapedia

‘‘दलित साहित्य के महानायक : ओमप्रकाश वाल्मीकि’’ वाल्मीकि समाज के गौरव और हिन्दी व दलित साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, कवि, कथाकार आलोचक, नाटककार, निर्देशक, अभिनेता, एक्टिविष्ट आदि बहुमुखी प्रतिभा के धनी ओमप्रकाश वाल्मीकि जी का जन्म 30 जून 1950 को ग्राम बरला, जिला मुजफ्फरनगर (उ0 प्र0) में एक गरीब परिवार में हुआ था। ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के पिता का नाम छोटन लाल व माता जी का नाम मुकन्दी देवी था। उनकी पत्नि का नाम चन्दा जी, जो आपको बहुत प्रिय थी। अपनी भाभी की छोटी बहन को अपनी मर्जी से आपने अपनी जीवन संगनी के रूप में चुना था। उन्हें पत्नि के रूप में पाकर आप हमेशा खुश रहे। वाल्मीकि जी ने अपने घर का नाम भी अपनी पत्नि के नाम पर ‘‘चन्द्रायन’’ रखा है । जो उनकी पत्नि से उनके अद्धभुत प्रेम को दर्शाता है। वाल्मीकि जी के यहाँ पर कोई सन्तान नही थी । जब आपसे कोई अनजाने में पूछ लेता तो, तब चन्दा जी बताती थी कि हमारे बच्चे एक, दो नही बहुत बड़ा परिवार है। हमारे जितने छात्र ओमप्रकाश वाल्मीकि जी को पढ़ रहे है, उन पर शोध कार्य कर रहे है । वे सब हमारे ही तो बच्चे है । ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के कार्यो पर पूरे देश में सैकडो छात्र-छात्राओ ने रिसर्च किया है । अपने मरणोपरान्त तक ओमप्रकाश वाल्मीकि जी भी भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (प्प्।ै), राष्ट्रपति निवास शिमला मे फैलो के रूप में शोध कार्य करते रहे। ओमप्रकाश वाल्मीकि जी का निधन देहरादून (न्ण्ज्ञ) में लम्बे समय तक कैंसर से झुझते हुयें, 17 नवम्बर 2013 को हुआ। वाल्मीकि जी का जाना साहित्य जगत को भारी क्षति हुई। जिसकी पूर्ति कभी नही हो पाएगी । मात्र 63 वर्ष की आयु मे वाल्मीकि जी हमारे बीच नही रहे। वाल्मीकि जी अपने जीवन मे दो, चार वर्ष और चाहते थे। ताकि वे...

महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा

• • महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा | Maharshi Valmiki ki katha | वाल्मीकि की कहानी | valmiki ki kahani | कैसे डाकू से साधु बने वाल्मीकि वाल्मीकि एक लुटेरा था, जो आने जाने वाले राहगीरों को लूटा करता था। एक दिन उसने ऐसे राहगीर को लूटने का प्रयास किया जिसके पास कुछ भी नहीं था। राहगीर कहने लगा,”मैं नारद हूं। तुम लोगों को लूटने का पाप क्यों करते हो? “ लुटेरे ने कहा, “मुझे अपने परिवार का खर्चा चलाना होता है।” नारद ने कहा, ” जाकर अपने परिवार से पूछो कि क्या वे लोग तुम्हारे पास में भी भागीदार बनने को तैयार है”। Maharshi Valmiki ki katha लुटेरे ने घर जाकर अपने पिता से पूछा, “मैं लोगों को लूट कर रुपया पैसा लाता हूं। क्या आप मेरे पाप में भागीदार बनेंगे? “उसका पिता यह सुनकर गुस्सा हो पड़ा और चिल्लाया, दूर हो जा, लुटेरे, कहीं के! उसकी मां भी नाराज होते हुए बोली, “मैं क्यों तुम्हारे पास में भागीदार बनू? मैंने पूरे जीवन में कभी कुछ नहीं चुराया।” उसकी पत्नी कहने लगी, “मेरी जिम्मेदारी उठाना तो तुम्हारा कर्तव्य है।” लूटेरा लौटकर नारद के पास आया तो नारद बोले, “हर कोई इस दुनिया में अकेला है। ईश्वर की पूजा करो। वही हमेशा तुम्हारे साथ रहता है।” लुटेरे ने कई साल तक तपस्या की। एक दिन उसे आकाशवाणी सुनाई दी, “तुम्हारा नया नाम वाल्मीकि होगा तुम राम कथा लिखोगे।” वाल्मीकि ने ही रामायण की रचना की थी। यहाँ पढ़ें : महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा | Life Story Of Adikavi Valmiki Rushi | How did Valmiki become Rishi?

Maharishi Valmiki Biography in Hindi : महर्षि वाल्मीकि की जीवनी

Maharishi Valmiki Biography in Hindi : महर्षि वाल्मीकि की जीवनी Maharishi Valmiki Biography in Hindi : महर्षि वाल्मीकि की जीवनी आदि कवि रामायण रचयिता महर्षि वाल्मीकि का जीवन बड़ा ही रोचक व प्रेरणादायक है। आइये आज इस लेख में हम जानेकि कैसे वे डाकू रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बन गए और महर्षि वाल्मीकि संक्षेप में नाम - महर्षि वाल्मीकि जन्म - त्रेता युग (भगवान् राम के काल में) अन्य नाम - रत्नाकर , अग्नि शर्मा पिता / माता- प्रचेता / चर्षणी उपलब्धि - आदि कवि , वाल्मीकि रामयण के रचयिता विशेष - देवऋषि नारद के कारण डाकू का जीवन त्याग कर कठोर तप किया और डाकू से महर्षि बन गए। वाल्मीकि जयंती हिन्दू पंचांग अनुसार आश्विनी माह की पुर्णिमा के दिन बड़े धूम धाम से मनाई जाती है। महर्षि वाल्मीकि आदिकवि के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। उन्हे यह उपाधि सर्वप्रथम श्लोक निर्माण करने पर दी गयी थी। वैसे तो वाल्मीकि जयंती दिवस पूरे भारत देश में उत्साह से मनाई जाती है परंतु उत्तर भारत में इस दिवस पर बहुत धूमधाम होती है। उत्तरभारतीय वाल्मीकि जयंती को‘ प्रकट दिवस’ रूप में मनाते हैं। वाल्मीकि ऋषि का इतिहास और बाल्यकाल माना जता है कि वाल्मीकि जी उनकी माता का नाम चर्षणी और भाई का नाम भृगु था। बचपन में उन्हे एक भील (भील गुजरात , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , महाराष्ट्र और राजस्थान में एक अनुसूचित जनजाति है) चुरा ले गया था। जिस कारण उनका लालन-पालन भील प्रजाति में हुआ। इसी कारण वह बड़े हो कर एक कुख्यात डाकू– डाकू रत्नाकर बने और उन्होंने जंगलों में निवास करते हुए अपना काफी समय बिताया। वाल्मीकि ऋषि जी का परिचय वाल्मीकि ऋषि वैदिक काल (वैदिक काल प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक काल खंड है, उस दौरान वेदों की रचना हुई थी, हड़प्पा स...

महर्षि ऋषि वाल्मीकि का पुराना नाम क्या था

महर्षि वाल्मीकि का जन्म ब्राह्मण कश्यप परिवार में हुआ था. लेकिन बचपन में ही उनका अपहरण एक भीलनी (भील सम्प्रदाय की आदिवासी महिला) ने कर दिया था. इस प्रकार वाल्मीकि भीलो के साथ ही पले-बढे थे. और बड़े होकर डाकू बन गए थे. लेकिन आपको पता है की महर्षि वाल्मीकि का पुराना नाम क्या था. जब वह डाकू थे. तो इस आर्टिकल में हम आपको ऋषि वाल्मीकि के अतीत में लेकर जाएगे और उनकी पूरी कहानी बताएगे. महर्षि ऋषि वाल्मीकि कौन थे? महर्षि वाल्मीकि का पुराना नाम रत्नाकर था. तथा उनका लालन-पालन जंगल में भील सम्प्रदाय के लोगो के साथ हुआ था. इस सम्प्रदाय के लोग पहाड़ो तथा जंगलो में रहते थे. तथा जंगल से जाने वाले मार्ग पर घात लगा कर बैठते थे. अगर कोई रहागीर वहा से निकलता तो उसे लुट कर पैसा आपस में बाट देते थे. चूँकि रत्नाकर का लालन पालन इन्ही सम्प्रदाय के लोगो के साथ हुआ इसलिए उन्होंने भी सम्प्रदाय की परंपरा को अपनाया और आगे जाकर डाकू के काम को ही पेशे के रूप में अपनाया. महाभारत किसने लिखा था – महाभारत के लेखक और रचियता अपने परिवार के लालन पालन के लिए वह रास्ते में आने जाने वाले रहागीरो को लूटते थे. और उनको लूट से जो कुछ भी प्राप्त होता था. उससे अपने परिवार का पेट पालते थे. कभी-कभी जरूरत पड़ने पर वह राहगीरों की हत्या भी कर देते थे. इस प्रकार रत्नाकर के डाकू के काम से उनका पाप का घड़ा भरने लगा था. एक समय की बात है. जब उनके जंगल के रास्ते से नारद मुनि निकलते है. अपने डाकू के कार्य अनुसार रत्नाकर नारद मुनि को लुटने के लिए बंदी बना देते है. तब नारद मुनि ने रत्नाकर से एक प्रश्न पूछा कि “तुम ऐसा पाप का काम क्यों करते हो प्रभु ने तुम्हे हाथ पैर दिए है ईमानदारी से क्यों नहीं कमाते हो?” तब रत्नाकर ने जवाब दिया कि “य...

रामायण (प्रसंग

महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप के वंश में पूत्र प्रचेता और उनकी पत्नी चर्षणी के घर में हुआ। महर्षि वाल्मीकि के भाई महर्षि भृगु भी परम ज्ञानी थे। वाल्मीकि जी का पालन-पोषण उनके असली माता-पिता प्रचेता व चर्षणी नहीं कर सके थे क्योंकि उन्हें बचपन में ही एक भील चुरा कर ले गया था। भील के वाल्मीकि जी को चुरा कर ले जाने के कारण इनका पालन-पोषण भील प्रजाति में हुआ था। भीलों का प्रमुख कार्य लोगों से लूट-पाट करके अपना जीवन गुजारना था। भीलों में पले-बढ़े होने के कारण यह भी एक डाकू बने, इन्हें इनके तब के नाम रत्नाकर डाकू से जाना जाता था। एक बार रत्नाकर की मुलाकात नारद मुनि से हुई। रत्नाकर ने उन्हें भी लूटने का प्रयास किया तो नारद मुनि ने उनसे पूछा कि यह कार्य क्यों करते हो ? रत्नाकर ने उत्तर दिया कि परिवार के पालन-पोषण के लिए, वह ऐसा करते है। नारद मुनि ने रत्नाकर से कहा कि वह जिस परिवार के लिए अपराध कर रहे हैं, क्या उस परिवार का सदस्य उनके पापों का भागीदार बनने को तैयार होंगे ? असमंजस में पड़े रत्नाकर ने नारद मुनि को पास ही किसी पेड़ से बांधा। अपने घर उस प्रश्न का उत्तर जानने पहुंच गए। उनके परिवार ने उनके पापों में भागीदार होने से इनकार कर दिया। यह जानकर उन्हें निराशा हुई। यह सुन रत्नाकर वापस लौटे, नारद मुनि को खोला, और उनके चरणों में गिर गए तथा इन पापों से मुक्ति पाने का परामर्श मांगे। तत्पश्चात् नारद मुनि ने उन्हें परामर्श दिए कि राम-राम का जप करें, साथ ही श्री राम के जीवन चरित्र का वर्णन सुनाए। फिर रत्नाकर ने धुनी रमा ली और वह राम-नाम का तप करने लगे। ध्यान में मग्न रत्नाकर शरीर के चारों ओर दीमकों ने अपना घर बना लिया। रत्नाकर, नारद जी के कहे अनुसार राम नाम का जाप करते रहे लेकिन भूलव...

महर्षि दधीचि की कहानी

• • महर्षि दधीचि की कहानी | Maharishi Dadhichi Story In Hindi | दधीचि ऋषि की कहानी असुर सेना के आक्रमण से डरकर इंद्र दधीचि ऋषि के पास सहायता मांगने और उनसे हर तरह के भय को दूर करने वाली मधु विद्या का पाठ सीखने पहुंचे। दधीचि इंद्र को मधु विद्या देने पर सहमत हो गए। इंद्र ने तभी उन्हें चेतावनी दी, ” अगर आप यह विद्या किसी और को देंगे तो मैं आपका सिर काट डालूंगा।” Maharishi Dadhichi मधु विद्या सीखने के बाद इंद्र का मुख चमकने लगा। उनके मुख का तेज देखकर अश्विनी कुमारों ने भी मधु विद्या सीखने की इच्छा जताई। वे दधीचि के पास गए लेकिन उन्होंने अश्विनी कुमारों को अपने वचन के बारे में बता दिया। अश्विनी कुमारों ने तय किया कि अगर वे दधीचि के सिर की जगह घोड़े का सिर लगा दे तो इंद्र को मूर्ख बनाया जा सकता है। योजना के अनुसार दधीचि ने घोड़े का सिर लगाकर अश्विनी कुमारों को मधु विद्या सिखाने शुरू कर दी। जब इंद्र को यह पता चला तो उन्होंने दधीचि के घोड़े वाले सिर को काट कर अलग कर दिया। इंद्र के जाते ही अश्विनी कुमारों ने दधीचि के घर पर फिर से उनका मूल सिर लगा दिया। यहाँ पढ़ें : महर्षि दधीचि की कहानी | इंद्र ने दधीचि का सर क्यों काट दिया था | Story of Maharishi Dadhichi |

वाल्मीकि जी का जीवन परिचय

वाल्मीकि ऋषियों में श्रेष्ठ प्रथम कवि कहलाते हैं। महर्षि वाल्मीकि का पहले का नाम रत्नाकर था। इनका जन्म पवित्र ब्राह्मण कुल में हुआ था, किन्तु डाकुओं के संसर्ग में रहने के कारण ये लूट-पाट और हत्याएँ करने लगे और यही इनकी आजीविका का साधन बन गया। इन्हें जो भी मार्ग में मिल जाता, ये उसकी सम्पत्ति लूट लिया करते थे। एक दिन इनकी मुलाकात देवर्षि नारद ने कहा, “मेरे पास इस वीणा और वस्त्र के अतिरिक्त है ही क्या? तुम लेना चाहो तो इन्हें ले सकते हो, लेकिन तुम यह कर कर्म करके भयङ्कर पाप क्यों करते हो?” देवर्षि की कोमल वाणी सुनकर वाल्मीकि (Valmik) का कठोर हृदय कुछ द्रवित हुआ। इन्होंने कहा, “भगवन्! मेरी आजीविका का यही साधन है। इसके द्वारा मैं अपने परिवार का भरण पोषण करता हूँ।” देवर्षि बोले, “तुम जाकर पहले अपने परिवार वालों से पूछ आओ कि वे तुम्हारे द्वारा केवल भरण पोषण के अधिकारी हैं या तुम्हारे पाप कर्मों में भी हिस्सा बटायेंगे । तुम विश्वास करो कि तुम्हारे लौटने तक हम कहीं नहीं जायेंगे। इतने पर भी यदि तुम्हें विश्वास न हो तो मुझे इस पेड़ से बाँध दो।” देवर्षि को पेड़ से बाँधकर ये अपने घर गये। इन्होंने बारी-बारी से अपने कुटुम्बियों से पूछा कि “तुम लोग मेरे पापों में भी हिस्सा लोगे या मुझसे केवल भरण-पोषण ही चाहते हो।” सभी ने एक स्वर में कहा कि “हमारा भरण-पोषण तुम्हारा कर्तव्य है। तुम कैसे धन लाते हो, यह तुम्हारे सोचने का विषय है। हम तुम्हारे पापों के हिस्सेदार नहीं बन सकते हैं।” अपने कुटुम्बियों की बात सुनकर वाल्मीकि (Balmiki) के हृदय में आघात लगा। उनके ज्ञाननेत्र खुल गये। उन्होंने जल्दी से जंगल में जाकर देवर्षि के बन्धन खोले और विलाप करते हुए उनके चरणों में पड़ गये। उस रुदन में गहरा पश्चात्...

राजा भर्तृहरि की सम्पूर्ण कहानी

• • राजा भर्तृहरि की सम्पूर्ण कहानी | Raja Bharthari Ki Katha | Story of King Bharthari in Hindi | Raja Bharthari Ki Kahani | भर्तृहरि की कहानी भर्तृहरि उज्जैन के राजा गंधर्व सेन के पुत्र थे। गंधर्व सेन की दो पत्नियां थी। भर्तृहरि पहली पत्नी की संतान थे दूसरी पत्नी से पैदा हुए पुत्र विक्रमादित्य थे। अपने पिता की मृत्यु के बाद भर्तृहरि राजा बने। उन्हें राजकाज में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उन्होंने अपने सौतेले भाई विक्रमादित्य को राजकाज सौंप दिया। भर्तृहरि ने अपना समय संगीत पुस्तकों और कला में बिताना शुरू कर दिया। वे बहुत अच्छे कवि और संस्कृत के प्रकांड विद्वान भी थे। जब विक्रमादित्य ने देखा कि भर्तृहरि राज्य और जनकल्याण के कार्यों मे बिल्कुल दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं तो उन्होंने उनसे बात की भर्तृहरि को गुस्सा आ गया और उन्होंने विक्रमादित्य को राज्य से निकाल दिया। Raja Bharthari Ki Kahani एक दिन भर्तृहरि हो पता चला कि उनकी पत्नी उसके राजे के एक कर्मचारी से प्यार करती है यह देखकर उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। उन्होंने सारे सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया। उन्होंने सन्यासी का जीवन बिताना शुरू कर दिया। उन्हें समझ में आ गया कि वह केवल अपने बारे में ही सोचा करते थे। कुछ समय बाद वे सांसारिक कामनाओं से बिल्कुल मुफ्त हो गए और शिव के नाम का जाप करते करते उन्हें शिव तत्व अर्थात आत्मज्ञान प्राप्त हो गया। उन्होंने वेदों का पालन शुरू कर दिया। भर्तृहरि प्राचीन भारत के सबसे महान ऋषि यों मैं गिने जाते हैं। भारत के कई महान संतों और तपस्वियों ने उनके ज्ञान और विचारों की साराना की है। यहाँ पढ़ें : सत्यवान और सावित्री की कहानी राजा भरथरी (भर्तृहरि) की संपूर्ण कहानी