वक्रोक्ति सिद्धांत pdf

  1. भारतीय काव्यशास्त्र प्रश्नोत्तर
  2. वक्रोक्ति सिद्धांत के आलोक में श्री मैथिलीशरण गुप्त के काव्य का अनुशीलन
  3. वक्रोक्ति सिद्धांत का स्वरूप बताइये
  4. वक्रोक्ति सिद्धांत – ई
  5. वक्रोक्ति सिद्धांत : स्वरूप व अवधारणा ( Vakrokti Siddhant : Swaroop V Avdharna )
  6. वक्रोक्ति सिद्धान्त


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भारतीय काव्यशास्त्र प्रश्नोत्तर

भारतीय काव्यशास्त्र महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर • वास्तविक काव्यलक्षण का प्रारंभ किस आचार्य से होता है जिन्होंने शब्द और अर्थ के सहभाव (शब्दार्थोसहितौ काव्यम् ) को काव्य की संज्ञा दी है --> भामह से • शब्द अर्थ संगम सहित भरे चमत्कृत भाय। जग अद्भुत में अद्भुतहिँ , सुखदा काव्य बनाए ॥ पंक्ति है --> ग्वाल कवि (रसिकानंद) • प्रतिभा के दो भेद (सहजा और उत्पाद्या ) किसने किये --> रुद्रट ने • प्रतिभा को काव्य निर्माण का एकमात्र हेतु मानने के कारण किस आचार्य के प्रतिभावादी कहा जाता है --> पंडितराज जगन्नाथ को • प्रतिभा के दो भेद 'कारयित्री' और 'भावयित्री' किस आचार्य ने किए हैं --> राजशेखर ने • भावयित्री प्रतिभा किसमे होती है --> सहृदय में • भारतीय काव्यशात्र में 'भावक' से अभिप्राय है? --> सहृदय या आलोचक से • "शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली" कथन किसका है--> दण्डी का • रीति सिद्धांत की उपलब्धि है --> शैली तत्वों को महत्व देना • वामन के अनुसार गुण और रिति का संबंध है --> अभेद • आचार्य कुंतक के अनुसार वक्रोक्ति के कितने भेद हैे --> 6 • वक्रोक्ति सिद्धांत की महत्वपूर्ण उपलब्धि है--> कलावाद की प्रतिष्ठा • कवः कर्म काव्यम् , (कवि का कर्म ही काव्य है ) कथन किसका है --> कुन्तक का • औचित्य विचार चर्चा , ग्रंथ किस आचार्य का है --> क्षेमेंद्र का • क्षेमेंद्र के अनुसार औचित्य के प्रधान भेद हैं--> 27 • क्षेमेंद्र ने रस का प्राण किसे माना है --> औचित्य को • ध्वन्यालोक की टीका 'ध्वन्यालोकलोचन' किसने लिखी --> अभिनवगुप्त ने • ध्वनि सिद्धांत का प्रादुर्भाव व्याकरण के स्पोट सिद्धांत से हुआ है • वैयाकरण ने वाक् (वाणी) के कितने प्रकार माने है?--> 4 १• परा, 2• पश्यंती, ३• मध्यम, ४• बैखरी • आनन्दवर्धन का...

वक्रोक्ति सिद्धांत के आलोक में श्री मैथिलीशरण गुप्त के काव्य का अनुशीलन

सा पत्यु: प्रथमापराध समये सख्योपदेशं बिना। नो जानाति सविश्रमांग वलनावकोक्ति संसुचनमु। । ” बाण:- बाण ने भी श्लेष, प्रहेलिका आदि का _ प्रयोग करते हुए शब्द क्रीड़ा का रस लिया है, बाण की वक्रोक्ति इतिवृत्त वर्णन से भिन्न काव्य की चमत्कार पूर्ण शैली तथा वचन-विदग्धता की ही पर्याय है। जिसका इन्होंने इस प्रकार विश्लेषण किया है - नवो्ड्थों जातिरग्राम्या, श्लेषोडक्लिष्ट: स्फुटो रस: । विकटाक्षर बन्धश्चि कृत्स्नमेकत्र दुर्लभम्‌। । “ इस प्रकार स्पष्ट है कि बाण का वक्रोक्ति मार्ग शब्द और अर्थ दोनों के चमत्कार से सम्पन्न है ,. उसमें आक्लिष्ट इलेष और नवीन अर्थ दोनों का चमत्कार है। भामह :-...... काव्यशास्त्र के ज्न्थों में वक्रोक्ति का. प्रथम व्यवस्थित विवेचन भामह के- काव्यालंकार” में मिलता है। भामह ने व्क्रोक्ति में शब्द और अर्थ दोनों की वक़ता का समावेश माना है - न नितान्ता दिमात्रेण जायते चारुता गिराम्‌। वक्राभिघेय शब्दोवित्तरिष्टा वाचामलंकृति। 1 . उनके अनुसार नितान्त आदि शब्दों के प्रयोग से वाणी में सौन्दर्य नहीं आता।. शब्द और अर्थ में वक़ता होनी चाहिए, जो वाणी का अलंकार है।. भामह का मानना है कि इन उपादानों से तो. आभूषण, उपवन और मालाएं अलंकृत होती है, वाणी को अलंकृत करने का सामर्थ्य तो शब्द और अर्थ की की वक्ता में है - न अल 'तदेभिरंगैर्भूष्यन्ते भूषणोपवन म्रज: । वाचा वक्रार्थ शब्दोक्तिरलंकाराय कल्पते। 1”. अमरुशतकमू - पृ0 सं0 पक डा फादटार . हर्ष चर्ति.- 18 . काव्यालंकार - 1/36......... _ काव्यालंकार - 5/66.......... अर (0७3. हे

वक्रोक्ति सिद्धांत का स्वरूप बताइये

Facebook Twitter WhatsApp Email Messenger वक्रोक्ति सिद्धांत का सामान्य अर्थ वक्र-उक्ति अर्थात् वक्र या वित्रित्र कथन या टेढ़ा कथन है। यह माना जाता है कि सामान्य बोलचाल में शब्दों का प्रयोग जिन अर्थों में होता है, उन्हीं अर्थों से सुंदर काव्य की रचना नहीं हो सकती। काव्य-रचना के लिए तो वैचित्र्ययुक्त कथन की आवश्यकता अपरिहार्य है। सामान्य कथन शैली से भिन्न चमत्कार प्रधान (वैचित्र्ययुक्त) कथन को वक्रोक्ति के रूप में माना जाता है। वक्रोक्ति को वैदग्धाभंगीभणिति कहा है, जिसमें शब्द और अर्थ का सौंदर्य मिला रहता है। वस्तुतः शब्द और अर्थ को कुंतक अलंकार्य (वर्ण-वस्तु) मानते है और वक्रोक्ति उनको सौंदर्य प्रदान करने वाला तत्व अलंकार है। – वक्रोक्ति वैदग्धाभंगीभणितिरुच्यते। (वक्रोक्ति जीवितम्) ‘वैदग्ध्य’ का तात्पर्य विदग्धता है अर्थात् कविकर्म-कौशल और भंगी अर्थात् भंगिमा तथा उसके आधार पर किया गया कथन वक्रोक्ति हैं। आचार्य कुंतक ने विचित्र अमिधा को ही वक्रोक्ति माना है – विचित्रैवामिधा वक्रोक्तिरित्युच्यते। ‘वैचित्र्य’ का आशय विशिष्ट चारुता से है। कुंतक यह भी मानते हैं कि वक्रोक्ति में सहृदयों को आहलादित करने की क्षमता होनी चाहिए। वक्रोक्ति में तीन विशेषताएँ होती हैं- अतः कहा जा सकता है कि शास्त्र तथा व्यवहार में प्रयुक्त होनेवाले सामान्य कथन से बिल्कुल भिन्न विचित्र उक्ति वक्रोक्ति हैं। इस प्रकार की उक्ति (वक्रोक्ति) कवि-व्यापार कौशल और प्रतिभा से संभव होती है। यह लोकोत्तर आह्लादकारिणी होती है अर्थात् इससे प्राप्त आनंद सामान्य नहीं होता है। वक्रोक्ति से असुंदर में सुंदर का समावेश होता है। वक्रोक्ति की इस वक्रता का संबंध वर्ण विन्यास अर्थात् वर्णों को विशेष क्रम में रखने से है। जब एक, ...

वक्रोक्ति सिद्धांत – ई

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वक्रोक्ति सिद्धांत : स्वरूप व अवधारणा ( Vakrokti Siddhant : Swaroop V Avdharna )

Advertisement वक्रोक्ति सिद्धांत ( Vakrokti Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धाँत है | वक्रोक्ति सिद्धांत के प्रवर्त्तक आचार्य कुंतक थे | आचार्य कुंतक से पहले के आचार्य वक्रोक्ति को अलंकार मात्र मानते थे परन्तु आचार्य कुंतक ने वक्रोक्ति को विशेष महत्त्व प्रदान किया | कुंतक ने वक्रोक्ति को काव्य के सौंदर्य का आधार मानते हुए इसे काव्य की आत्मा घोषित किया | Advertisement वक्रोक्ति का अर्थ ( Vakrokti Ka Arth ) ‘ वक्रोक्ति‘ दो शब्दों के मेल से बना है – वक्र + उक्ति | इस प्रकार वक्रोक्ति का सामान्य अर्थ है – टेढ़ी उक्ति | लोक-व्यवहार में इसका सामान्य अर्थ है – वाक् छल या हास परिहास के लिए की गई व्यंग्य विनोदपूर्ण बात | लेकिन साहित्य के क्षेत्र में इसका विशिष्ट अर्थ है | साहित्य के क्षेत्र में इसका अर्थ है – किसी भाव को सीधे सपाट शब्दों में न कहकर घुमा फिराकर सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त करना | सामान्य शब्दों में वक्रोक्ति वह अभिव्यँजना शक्ति है जो सामान्य कथन को आकर्षक और चमत्कारपूर्ण बना देती है | वक्रोक्ति का इतिहास अथवा कुंतक-पूर्व वक्रोक्ति की अवधारणा प्राचीन इतिहास में हास-परिहासपूर्ण कथन के लिए ‘ वक्रोक्ति‘ शब्द का प्रयोग होता था | ‘ अमरूकशतक‘ में व्यंग्यात्मक उक्ति के लिए ‘ वक्रोक्ति‘ शब्द का प्रयोग हुआ है | बाणभट्ट द्वारा वक्रोक्ति का प्रयोग उक्ति वैचित्र्य, चमत्कारपूर्ण कथन शैली या क्रीड़ालाप के लिए किया गया है | आचार्य विश्वनाथ ने वक्रोक्ति को प्रशंसनीय गुण मानते हुए बाणभट्ट तथा सुबंधु को वक्रोक्ति में निपुण माना है | (1) भामह भामह मूलत: अलंकरवादी आचार्य थे | उन्होंने अपनी रचना ‘ काव्यालंकार‘ में वक्रोक्ति को सभी अलंकारों का मूल कहा है | भामह वक्रोक्ति को...

वक्रोक्ति सिद्धान्त

अनुक्रम • 1 ऐतिहासिक विकास • 1.1 भामह • 1.2 दण्डी • 1.3 आनन्दवर्धन • 1.4 अभिनवगुप्त • 1.5 कुन्तक • 1.6 नगेन्द्र • 2 अन्य सिद्धान्तों से सम्बन्ध • 3 महत्व • 4 सन्दर्भ ऐतिहासिक विकास [ ] वक्रोक्ति सिद्धान्त की प्रतिष्ठा तथा प्रतिपादन का श्रेय कुन्तक को है परन्तु इसकी परम्परा प्राचीन है। भामह के पूर्ववर्ती कवियों [ ] भामह ने वक्रोक्ति का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया है। उन्होंने वक्रोक्ति में शब्द और अर्थ, दोनों का अंतर्भाव माना है। उन्होंने वक्रोक्ति तथा अतिशयोक्ति का समान अर्थ में प्रयोग किया है। अतिशयोक्ति का अर्थ है लोकातिक्रांत गोचरता। वक्रोक्ति को इसी कारण भामह मूल [ ] दंडी ने भी वक्रोक्ति को भामह के समान महत्व दिया है। दंडी ने वांङमय के दो भेद बताये हैं- स्वाभावोक्ति तथा वक्रोक्ति। दंडी ने वक्रोक्ति तथा अतिशयोक्ति को समस्त अलंकारों के मूल में स्वीकार किया है। भामह और दंडी में केवल यह अंतर है कि भामह स्भावोक्ति को वक्रोक्ति की परिधि में स्वीकार करते हैं और दंडी उसे भिन्न मानते हुए वक्र कथन से कम महत्वपूर्ण समझते हैं। आनन्दवर्धन [ ] [ ] अभिनवगुप्त (10-11वीं सदी) ने वक्रोक्ति के सामान्य रूप को स्वीकार किया है। इनके अनुसार शब्द और अर्थ की वक्रता का आशय उनकी लोकोत्तर स्थिति है तथा इस लोकोत्तर का अर्थ अतिशय ही है। [ ] वक्रोक्ति सिद्धांत के प्रवर्तक कुंतक ने अपने ग्रंथ नगेन्द्र [ ] अन्य सिद्धान्तों से सम्बन्ध [ ] भारतीय काव्य सिद्धान्त में महत्व [ ] कुंतक का वक्रोक्ति सिद्धांत व्यापक और समन्वयशील सिद्धांत है। इसकी उद्भावना के मूल में वक्रोक्ति सिद्धांत में संपूर्ण काव्य को स्वीकृति मिली है। उनके सिद्धांत में बल भले ही कला पक्ष पर हो पर उनकी व्याख्या के अंतर्गत वस्तु पक्ष तथा भ...